किसान अच्छी फसल उपज के लिए अपने खेतों में करे कॉपर और जिंक का प्रयोग
जानिए , फसलों के लिए कॉपर (तांबा) और जिंक (जस्ता) का महत्व और प्रयोग

खेतों में करे कॉपर और जिंक का प्रयोग: फसल के अच्छे उत्पादन के लिए फसल को पोषक तत्व मिलना बहुत जरुरी होता हैं। पोषक तत्वों के कारण फसल की पैदावार बहुत प्रभावित होती है। वर्तमान में मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो रही हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होने के कई कारण हैं। एक ही खेत में निरंतर फसल के उत्पादन के कारण मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो रही हैं। इस कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा में संतुलन नहीं हो रहा हैं। फसलों में जिंक की कमी से बीमारियों में वृद्धि होती हैं, जिसका विपरीत प्रभाव फसल की पैदावार पर होता हैं। किसान भाई फसलों में कॉपर और जिंक की मात्रा का प्रयोग अवश्य करें।
कॉपर और जिंक का प्रयोग पैदावार में वृद्धि करने के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में भी सहायक हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसलों में कॉपर और जिंक की निर्धारित मात्रा का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। फसलों में कॉपर और जिंक का महत्व और फसल में इसके प्रयोग की संपूर्ण जानकारी किसान भाइयों को होना आवश्यक हैं। जो कि इस लेख के माध्यम से जानेंगे।
मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का परीक्षण कराए
खेतों में करे कॉपर और जिंक का प्रयोग: किसान फसल की बुवाई से पूर्व मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का परीक्षण अवश्य कराए। मिट्टी का परीक्षण करने से मिट्टी में पाए जाने वाले खनिज तत्व, प्राकृतिक गुणों और उर्वरा शक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती हैं। मिट्टी के परीक्षण से उर्वरा क्षमता और स्वास्थ्य की जांच में भी सहायता मिल जाती हैं। मिट्टी का परीक्षण करने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती हैं इसके साथ ही यह भी ज्ञात हो जाता है की मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी हैं और उन पोषक तत्वों की कमी को कैसे दूर किया जा सकता हैं? मिट्टी के परीक्षण से किसान मिट्टी के अनुसार उचित उर्वरकों का चयन कर सकते हैं। किसान द्वारा सही उर्वरक का चयन करने से फसल की पैदावार में वृद्धि होती हैं।
विभागीय प्रयोगशाला में भी मिट्टी का परीक्षण करा सकते हैं। इसके अतिरिक्त मिट्टी के परीक्षण के लिए अपने स्थानीय कृषि विभाग के अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। मिट्टी का परीक्षण करने से अपने खेत को ओर अधिक उपजाऊ बना सकते हैं।
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पौधों में कॉपर(तांबे) की कमी से दिखाई देने वाले लक्षण
पौधों में कॉपर की कमी से पौधे के विकास की गति धीमी हो जाती हैं। पौधों की पत्तियां सूखने लगती हैं। इसके अतिरिक्त
पौधे में उगने वाली नई पत्तियों का आकार बौना रह जाता हैं और पौधे का विकास भी रुक जाता हैं। इसका सीधा प्रभाव फसल की पैदावार पर होता हैं।
यदि पौधों में कॉपर की मात्रा अधिक हो जाए तब भी फसल को नुकसान होता हैं। कॉपर की अधिक मात्रा से पौधे की जड़ों का विकास स्थिर हो जाता हैं। इसके अलावा पौधे के विकास की गति बहुत धीमी से अधिक वृद्धि के साथ ही आयरन की कमी को प्रदर्शित करते हैं।
पौधे में कॉपर(तांबे) की कमी दूर करने के उपाय
- पौधों में कॉपर की कमी दूर करने के लिए मिट्टी का PH मान मुख्य होता हैं। यदि पौधों को मिट्टी में लगाया जा रहा हैं तब पौधों की जड़ों के लिए कॉपर को सोखने के लिए मिट्टी का PH मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए।
- यदि हाइड्रो के साथ कॉपर का प्रयोग हो तब PH मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
- पौधों में कॉपर की कमी को दूर करने के लिए पोषक तत्वों से युक्त उच्च गुणवत्ता वाली मिट्टी का प्रयोग करें।
- पौधों में कॉपर की कमी को दूर करने के लिए मिट्टी में खुबानी बीज को मिला देना चाहिए।
- पौधों में कॉपर की कमी को दूर करने के लिए रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग किया जा सकता हैं।
- पौधों में कॉपर की कमी को दूर करने के लिए EDTA (एथिलीन डायमिने टेट्रा एसिटिक एसिड)का प्रयोग करें।
- जिंक ऑक्साइड और आयरन का भी प्रयोग कर सकते हैं।
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पौधों में जिंक(जस्ते) की कमी से दिखाई देने वाले लक्षण
पौधों में जिंक की कमी से सबसे ज्यादा नई पत्तियां प्रभावित होती हैं और साथ ही पुरानी पत्तियां भी प्रभावित होने लगती हैं। पौधों में जिंक की कमी से पत्तियों का रंग हल्का पीला , पीला , सफेद या कांस्य हो जाता हैं।पौधों में जिंक की कमी से छोटी पत्तियों का रंग पीला हो जाता हैं।
पौधे में जिंक(जस्ते) की कमी दूर करने के उपाय
मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा में संतुलन नहीं हो रहा हैं। विभिन्न प्रकार की मिट्टी की स्थितियों के कारण भी पौधों में जिंक की कमी हो जाती हैं। किसान मिट्टी का परीक्षण करके भी जिंक की कमी की जानकारी ले सकते हैं। पौधे में जिंक की कमी को दूर करने के लिए उर्वरकों के रूप में कई भिन्न-भिन्न जिंक यौगिकों का प्रयोग किया जाता हैं। जिंक यौगिकों के रूप में सबसे ज्यादा जिंक सल्फेट का प्रयोग किया जाता हैं।
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