सोयाबीन की फसल में कीट एवं रोग, इस तरह करें नियंत्रण

सोयाबीन की फसल में कीट एवं रोग का नियंत्रण और रोकथाम से बढ़ेगा उत्पादन

देश के कई हिस्सों में इस साल सोयाबीन की बुआई अलग-अलग समय पर की गई है। जहां सोयाबीन की शीघ्र पकने वाली किस्मों की बोवनी जून के दूसरे या तीसरे सप्ताह में की गई है। इस समय दाने भरने की स्थिति में हैं जबकि बाद में बोई गई सोयाबीन की फसल तथा अन्य कुछ किस्मों में इस समय फूलने या उसके बाद की स्थिति में हैं। सोयाबीन की फसल में इस मौसम में कई तरह के कीट एवं रोग लागने की संभावना बनी रहती है। इसको लेकर भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के द्वारा सोयाबीन किसानों के लिए सलाह जारी की गई है।

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कृषि वैज्ञानिकों द्वारा जारी की गई सलाह में यह बताया गया है की पिछले कुछ दिनों में सोयाबीन की फसल पर एरिअल ब्लाइट, एन्थ्राक्रोज, मोजेक वायरस नामक रोगों का प्रकोप देखा जा रहा है। इसके साथ-साथ चक्र भृंग, तना मक्खी एवं पत्ती खाने वाली इल्लियाँ का प्रकोप फसल पर बना हुआ है। ऐसी स्थिति में किसान समय पर सोयाबीन कीट रोगों की पहचान कर उनका नियंत्रण कर फसल को होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं।

रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट रोग की रोकथाम

अभी कई स्थानों पर सोयाबीन की फसल में फफूंदजनित रोगों (रायजोक्टोनिया एरिअल ब्लाइट तथा एन्थ्राक्रोज) का प्रकोप देखा जा रहा है। किसान इन रोगों के नियंत्रण हेतु अनुशंसित फफूँद नाशकों टेबुकोनाझोल 25.9% ई.सी. (625 मिली./हे.) या टेबूकोनाझोल + सल्फर (1.25 किलोग्राम/हे.)

या पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20% डब्ल्यू.जी. (375-500 ग्रा/हे.) या पायरोक्लोस्ट्रोबीन + इपिक्साकोनाजोल 50ग्राम/ली. एस.ई. (750 मिली./हे.) या फ्लुक्सापग्रोक्साड + पायरोक्लोस्ट्रोबीन (300 ग्राम./हे.) का छिड़काव किया जा सकता है। दाने भरने की अवस्था में फफूँद नाशक के छिड़काव से बीज गुणवत्ता वृद्धि हेतु लाभ मिलता है।

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सोयाबीन की फसल में पीला मोजेक की रोकथाम

अभी कई स्थानों पर सोयाबीन की फसल में पीला मोजेक रोग का प्रकोप देखा जा रहा है। किसान इस रोग के रासायनिक नियंत्रण हेतु तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम हेतु पुर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्स्म + लैम्बडा सायहेलोथ्रिन (125 मिली./हे.) या वीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली./हे.) का छिड़काव करें। इनके छिड़काव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है। यह भी सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु किसान अपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं।

सोयाबीन की फसल में गेरुआ (रस्ट/ताम्बोरा) रोग का नियंत्रण महाराष्ट्र के कुछ जिलों में गेरुआ (रस्ट/ताम्बेरा) रोग लगने लगा है। ऐसी स्थिति में किसान प्रारम्भिक लक्षण दीखते ही तुरंत क्रेसोक्सिम मिथाईल 44.3% एस.सी. (500 मिली./हे.) या पिकोक्सीस्ट्रोबिन 22.52% एस.सी. (400 मि.ली./हे.) या फ्लुक्सापय्रोक्साड + पायरोक्लोस्ट्रौबीन 300 ग्राम/हे. या हेक्साकोनाझोल 5 ई.सी. (800 मिली./हे.) में से किसी एक रसायन का तुरंत अपने खेत में छिड़काव करें।

सोयाबीन की फसल में चूहों का नियंत्रण

कई क्षेत्रों में अभी सोयाबीन की फलिया कट–कट कर गिरने की स्थिति देखी गई है। यह समस्या शीघ्र पकने वाली किस्मों में ही अधिकतर देखी जाती हैं जो कि प्रारंभिक रूप से चूहों द्वारा निर्मित समस्या हो सकती है, अत: सलाह है की चूहों के नियंत्रण हेतु चूहों के बिल के आसपास जिंक फास्फाइड आधारित बिस्कुट/केक/आटे की गोलियाँ बनाकर रखें।

सोयाबीन की फसल में चने की इल्ली का नियंत्रण

ऐसे क्षेत्र जहाँ सोयाबीन की फसल दाने भरने की अवस्था में हैं, चने की इल्ली द्वारा दाने खाने की सम्भावना को देखते हुए सलाह हैं कि फसल पर इंडोक्साकार्व 15.8 ई.सी (333 मिली./हे.) या टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250–300 मिली./हे.) या इमामेक्टीन बेंजोएट (425 मिली/हे.) या लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.90 सी.एस. (300 मिली./हे.) का छिड़काव करें।

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चक्र भृंग एवं तना मक्खी एवं इल्ली का नियंत्रण

चक्र भृंग के नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250-300 मिली./हे.) या थायक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. (750 मिली./हे.) या प्रोफेनोफाँस 50 ई.सी. (1 ली./है.) या इमामेकटीन बेंजोएट (425 मिली.हे.) का छिड़काव करें। साथ ही इसके फैलाव की रोकथाम हेतु प्रारंभिक अवस्था में ही पौधे के ग्रसित भाग को तोड़कर नष्ट कर दें ।

तना मक्खी चक्र भृंग तथा पत्ती खाने वाली इल्लियों के एक साथ नियंत्रण हेतु पुर्वमिश्रित कीटनाशक क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 9.30% + लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.60% ZC (200 मिली/हे.) या बीटासायफ्लूथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली./हे.) या पुर्वमिश्रित थायमिथोक्सम + लैम्बडा सायहेलोथ्रिन (125 मिली./हे.) का छिड़काव करें।

सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली का नियंत्रण

पत्ती खाने वाली इल्लियाँ (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली एवं चने की इल्ली) हो, इनके नियंत्रण के लिए निम्न में से किसी भी एक रसायन का छिड़काव करें:-

ब्रोफ्लानिलिडे 300 एस.सी. (42 – 62 ग्राम/हे.) या फ्लुबेंडियामाइड 39.35 एस.सी. (150 मिली.) या इंडोक्साकार्व 15.8 ई.सी. (333 मिली./हे.) या टेट्रानिलिप्रोल 18.18 एस.सी. (250–300 मिली./हे.) या नोवाल्युरोन + इंडोक्साकार्व 4.50% एस.सी. (825–875 मिली./हे.) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली./हे.) या इमामेक्टिन बेंजोएट 1.90 (425 मिली./हे.)

या फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यू.जी. (250–300 ग्राम/हे.) या लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.90 सी.एस. (300 मिली./हे.) या प्रोफेनोफाँस 50 ई.सी. (1 ली./हे.) या स्पायनेटोरम 11.7 एस.सी. (450 मिली./हे.) या पुर्वमिश्रित बीटासायफ्लूथ्रिन + इमिडा क्लोप्रिड (350 मिली./हे.) या पूर्वमिश्रित थायमिथोक्सम + लैम्बडा सायहेलोथ्रिन (125 मिली./है.) या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 9.30% + लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.60% ZC, (200 मिली./हे.) का छिड़काव करें।

सोयाबीन फसल में हेयरी कैटरपिलर का नियंत्रण

बिहार हेयरी कैटरपिलर का प्रकोप प्रारंभ होने पर किसानों को सलाह है कि प्रारंभिक अवस्था में झुंड में रहने वाली इन इल्लियों को पौधे सहित खेत से निष्कासित करें एवं इसके नियंत्रण हेतु फसल पर लैम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.90 सी.एस. (300 मिली./हे.) या इंडोक्साकार्व 15.8 ई.सी. (333 मिली./हे.) का छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल को कीट रोगों से बचाने के उपाय

किसान खेत के विभिन्न स्थानों पर निगरानी करते रहें, यदि ऐसा पौधा मिले जिस पर झुंड में अंडे या इल्लियाँ हों, तो ऐसे पौधों को खेत से उखाड़कर बाहर कर दें। सोयाबीन की फसल में पक्षियों की बैठक हेतु “T” आकर के बर्ड–पर्चेस लगाएँ, इससे कीट–भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलती है।

कीट या रोग नियंत्रण के लिए केवल उन्हीं रसायनों का प्रयोग करें जो सोयाबीन की फसल में अनुशंसित हों, उन रसायनों या रसायनों के मिश्रण का उपयोग नहीं करें जो सोयाबीन फसल के लिए अनुशंसित नहीं हैं, इससे सोयाबीन की फसल पूर्णत: खराब होने की संभावना होती है।

जैविक सोयाबीन उत्पादन में रूचि रखने वाले कृषक गण पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाकू की इल्ली) की छोटी अवस्था की रोकथाम हेतु बेसिलस थुरिंजीएन्सिस अथवा ब्युवेरिया बेसिआना या नोमुरिया रिलेयी (1 ली./हे.) का प्रयोग कर सकते है।

यह भी सलाह है कि प्रकाश प्रपंच का भी उपयोग कर सकते हैं। किसान किसी भी प्रकार का कृषि–आदान खरीदते करते समय दुकानदार से हमेशा पक्का बिल लें जिस पर बेच नंबर एवं एक्सपायरी दिनांक स्पष्ट लिखा हो।


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