सोयाबीन की उत्तम किस्में- ये किस्में किसानों को देंगी ज्यादा पैदावार और अच्छा मुनाफा
फल-फूलने वाली टॉप 10 सोयाबीन की उत्तम किस्मों के बीजों के बारे में जानकारी....
सोयाबीन प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। सोयाबीन की बुवाई का समय आने वाला है। भारत में इसकी बुवाई का समय 15 जून से शुरू हो जाती है। इसे देखते हुए किसानों को सोयाबीन की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों की जानकारी होनी जरूरी है ताकि वे इन किस्मों में से अपने क्षेत्र के अनुकूल किस्म का चयन करके समय पर सोयाबीन की बुवाई कर सकें। भारत में सोयाबीन खरीफ की फसल के अंतर्गत आती है। भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में होती है। मध्य प्रदेश का सोयाबीन उत्पादन में 45% है। जबकि सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र का 40% हिस्सा है।
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इसके खेती करने से पहले इसकी विभिन्न किस्मों की जानकारी होना आवश्यक है।
सोयाबीन की उत्तम किस्में
- सोयाबीन किस्म VS 6124: इस किस्म के पौधे 3 से 6 फीट ऊंचाई में होते है, जो अधिक फूल-फलियों के साथ अच्छी पैदावार के लिए जानी जाती है फसल 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। उत्पादन की बात करें तो 20 से 25 क्विंटल/हेक्टेयर ले सकते है। यह वैरायटी रोगों के प्रति प्रतिरोधक अधिक है, बुवाई का समय 15 जून के बाद में माना गया है।
- JS 2034: यह सोयाबीन की नई किस्म 2034, 15 जून से लेकर 30 जून तक बुवाई कर लेनी चाहिए जो 85 से लेकर 90 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। उत्पादन की बात करें तो 25 क्विंटल के लगभग प्रति हेक्टेयर होता है।
- फुले संगम/KDS 726: यह किस्म महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ महाराष्ट्र से निकली गई थी, 100 से 110 दिन में पककर तैयार होने वाली किस्म जिसमे किट एवं रोग न के बराबर देखने को मिलते है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में ज्यादातर लगाई जा रही है, फुले संगम सोयाबीन की औसत उपज 25 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर है और इसमें हाईटेक तरीके से तैयार खेती से 40 क्विंटल/हेक्टेयर तक की उपज भी देखी गई है।
- प्रतापसोया – 45: 100 से 105 दिन में पकने वाली किस्म है, यह ज्यादातर राजस्थान और उत्तरी भारत के लिए ज्यादा अनुमोदित है। RKS- 45 की अधिकतम उपज उत्पादन क्षमता 30 से 35 क्विंटल/हेक्टेयर है। यह वैरायटी इल्ली रोग मुक्त किस्म है।
- PS – 1347: औसत उपज पैदावार क्षमता 30 क्विंटल/हेक्टेयर देखी गई है।उत्तरी भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, यूपी में इसे लगा सकते है। यह वैरायटी 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पिला मोजेक रोग रोधी प्रमाणित वैरायटी है।
- VL Soya – 59 और दूसरी 63: इस वैरायटी के पौधो में फली सड़न और पत्तियों पर धब्बा रोग नही लगता है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25 से 30 क्विंटल हो जाता है। उत्तरी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में इस किस्म को लगा सकते है, यह किस्म को पकाने में अधिक समय लगता है जो 125 से 130 दिन है।
- MACS – 1407: यह किस्म इस साल से खरीफ की फसल में लगाई जाएगी, यह हाल ही मे भारत मे विकसित की गई है जो असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त होगी, यह बीज खरीफ के मौसम में किसानों को बुवाई के लिए मई-जून से बाजार में उपलब्ध कराई जाएगी।
- सोयाबीन किस्म JS 9560: उत्पादन 25 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर उत्पादन होता है। 40 किलो/एकड़ बीज की मात्रा से बुवाई की जानी चाहिए, जो 80 से 85 दिन में पककर तैयार होती है।
- बिरसा सफेद सोया – 2: झारखंड और इसके आस-पास वाले राज्यों के लिए सर्वाधिक अनुमोदित किस्म है जो 25 से 30 क्विंटल/है. उत्पादन देती है। इस किस्म में इल्ली और पत्ती धब्बा रोग नहीं देखने को मिलता है।
- MAUS – 612: देश की मध्यम और भारी मिट्टी वाली भूमि में इस किस्म को लगा सकते है, जिसका उत्पादन 30 से 35 क्विंटल/हेक्टेयर तक हो जाता है। 90 से 100 दिन में कटाई पर आ जाती है। पिछले कुछ सालों से महाराष्ट्र में सर्वाधिक इसकी बुवाई देखी जा रही है।
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किस्मों का चयन कैसे करें?
किसान अपने राज्य एवं अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार ही फसलों की किस्मों का चयन करें। चयन करते समय अपने क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि अधिकारियों से सलाह एवं खेती की पूरी जानकारी अवश्य लें, जिससे किस्म, मिट्टी की गुणवत्ता एवं जलवायु के अनुसार समय पर खाद (उर्वरक) एवं सिंचाई की व्यवस्था कर सकें।
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सोयाबीन उत्पादन में स्थिरता लाने एवं प्रतिकूल परिस्थिति के कारण होने वाली हानि को कम करने के लिए किस्मों की विविधता प्रणाली को अपनाना चाहिए अर्थात हमेशा 3-4 किस्मों की खेती करनी चाहिए। इससे फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। साथ ही कीट-रोगों के नियंत्रण एवं कटाई-गहाई की पर्याप्त सुविधा के साथ-साथ किस्मों का अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
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