आंवले की खेती है फायदेमंद – एक बार पेड़ लगाकर हर साल पाए लाखों का मुनाफा

आंवले का पौधा सख्त होता है इसलिए इसको हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है

अगर आप औषधीय पौधे की खेती करना चाहते हैं तो ऐसे में आप आंवला की खेती कर सकते हैं जो आपको स्वस्थ रखने के साथ-साथ अच्छी कमाई भी करवाएगा

आंवला की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

 शुरुआत में इसके पौधे को सामान्य तापमान की ज़रूरत होती है मगर बड़ा होने के बाद वो 0 से 46 डिग्री तक का तापमान सह सकता है। आंवले के पौधे को विकास के लिए गर्मी की ज़रूरत होती है, लम्बे समय तक ठंड पड़ने से इसमें नुकसान होने की आशंका बढ़ जाती है। भारत में इसकी खेती समुद्र तटीय क्षेत्रों से 1800 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। सर्दी में आँवले के नये बगीचों में हानिकारक प्रभाव पड़ता है।  

आंवला की खेती के लिए भूमि 

आंवले का पौधा सख्त होता है इसलिए इसको हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। मिट्टी पी.एच. मान 6.5-9.5 के बीच हो, जलभराव वाली मिट्टी में आंवले की खेती न करें क्योंकि जल निकासी न होने के कारण इसके पौधे नष्ट हो जाते हैं। भारी मृदायें तथा ऐसी मृदायें जिनमें पानी का स्तर काफी ऊँचा हो, इसकी खेती हेतु अनुपयुक्त पायी गई हैं।

आँवला की खेती बलुई भूमि से लेकर चिकनी मिट्टी तक में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। बलुई मिट्टी में चिकनी मिट्टी की अपेक्षा अधिक पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं।

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आंवला की खेती का सही समय

आंवले के पौधे को शुरू में सामान्य तापमान की ज़रूरत होती है इसलिए आमतौर पर इसकी पौधारोपण जुलाई से सितम्बर माह के बीच की जाती है। हालांकि कई जगहों पर इसकी खेती जनवरी से फरवरी माह के बीच भी की जाती है।

आंवला का बीज कैसे बोए ?

आँवला के पौधे के लिए अच्छा पॉटिंग मिक्स तैयार करने के लिए आप 50% बलुई या चिकनी मिट्टी, 20% गोबर की खाद, 20% वर्मीकंपोस्ट और 10% नीम खली को मिक्स करें। अब पॉटिंग मिक्स युक्त, सीडलिंग ट्रे या उचित आकार के ग्रो बैग (6 से 10 इंच) में आंवले के बीज को 0.6 सेंटीमीटर (1/4 इंच) की गहराई में लगा दें।

आंवले की बीज लगाने से पहले मिट्टी को तैयार करना होता है। मिट्टी तैयार करने के लिए उसको अच्छे से जुतवाए, हो सके तो रोटावेटर का इस्तेमाल ज़रूर करें। ध्यान रहे कि मिट्टी में पिछली फ़सल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो चुके हो ताकि वो आगे चल कर कोई परेशानी नहीं हो। 

पौधा लगाने के लिए लगभग 1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्ढा खोदे और बीज लगाने के बाद इसको 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दे ताकि सूरज की धूप निरंतर में लगती रहे। एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी लगभग 4.5 मीटर होनी चाहिए।

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कैसे करे रखरखाव 

आंवला के नये बागों में रोपाई के बाद हर 2 दिन के अंदर और एक महीने के बाद हर 7 दिन में सिंचाई काम करते रहना चाहिये. बात करें पुराने बागों की, तो गर्मियों में आंवला के पुराने पेड़ों की नमी चली जाती है, इसलिये पेड़ों को हर 15 दिन में पानी देने की सलाह दी जाती है। 

पौधे से पेड़ बनने का समय 

आंवले की रोपाई के बाद उसका पौधा 4 से 5 साल में फल देने लगता है। आंवला का पूर्ण विकसित पौधा 8 से 9 साल के बाद हर साल औसतन 1 क्विंटल फल देता है। आंवला बाजार में 15 से 20 रुपये प्रति किलो में बिकता है। यानी हर साल एक पेड़ से किसान को 1500 से 2000 रुपये की कमाई होती है।

आंवला की देखभाल 

आंवला के बागों को हरा-भरा और फलदार रखने के लिये पेड़ों में पोषण प्रबंधन करते रहना चाहिये, जिससे अच्छी क़्वालिटी के फल मिल सके. इसके लिये 10 किग्रा. गोबर की कंपोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस और 75 ग्राम पोटेशियम आदि का मिश्रण बनाकर हर महीने आंवला के पेड़ों में डालते रहें। 

आंवला खाने से शरीर को लाभ 

आँवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है। सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है। 

दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी व खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि आँवला बहुत उपयोगी है।यदि आप फैटी लिवर या पीलिया की समस्या से परेशान हैं तो आंवला का जूस आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। आंवले में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट गुण लिवर स्वास्थ को बनाए रखने में आपकी मदद कर सकते हैं।


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