हरी खाद है खेती के लिए संजीवनी बूटी, जानिए कैसे कम लागत में बढ़ेगा उत्पादन
इस गर्मी खेतों में हरी खाद लगाएं किसान
आजकल फसल में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल हमारी सेहत खराब हो रही है, बल्कि इसके चलते मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी दिन-ब-दिन घट रही है। दूसरी ओर किसानों को फसलों से होने वाली आय का अधिकांश हिस्सा रासायनिक उर्वरकों पर खर्च हो रहा है, इसलिए उनके लिए यह जरूरी हो गया है कि वे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम करें और किसान वो तरीके अपनाएं, जिससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़े और ज्यादा लागत भी न लगे। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए हरी खाद एक अच्छा विकल्प है।
हरी खाद के लिए कौन सी फसल बोये ?
हरी खाद के लिए उगाए जाने वाले पौधों को हरी खाद फसल कहा जाता है। सामान्यत दाल वाली फसलों जैसे कि लोबिया, मूंग, उड़द, ग्वार, लोबिया आदि को हरी खाद के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा बरसीम और ढैंचा का भी इस्तेमाल किया जाता है। ढैंचा की वानस्पतिक वृद्धि तेज होने तथा वानस्पतिक भाग भी विघटनशील होने के कारण इसे सफलता से हरी खाद के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ढैंचा की दो प्रजातियां एक्यूलियाटा तथा रोस्ट्राटा का हरी खाद के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
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हरी खाद की फसल बोने का सही समय अप्रैल से जुलाई
अप्रैल-मई महीने में गेहूं की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें। इसके तहत खेतों में मई-जून के महीनों में कुछ ऐसी मोटी पत्तेदार फसलें लगाई जाती हैं, जो जल्दी पनप जाती हैं। ये खरपतवारों को बढ़ने नहीं देतीं। डेढ़-दो महीने की इन लहलहाती फसलों को खेतों में जुताई कर मिला दिया जाता है। इससे खेतों को हरी खाद मिल जाती है और उनका स्वास्थ्य सुधर जाता है। आसान भाषा में कहें तो हरी खाद के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों से होने वाली लागत को कम किया जाता है। हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों को पूरा करने के लिए की जाती है।
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हरी खाद बनाने की विधि और खर्च
लगभग 30 से 40 दिन बाद हरी खाद के लिए बोई गई फसल को मिट्टी में मिला दिया जाता है। खेत में मिलने के बाद 10 से 15 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव करने से पौधों का विघटन जल्दी हो जाता है। खेत में मिलने पर सूक्ष्म जीव इसे विघटित कर देते हैं। यह खाद के रूप में फसल को उपलब्ध हो जाती है। फसल को बोने से पहले हरी खाद की फसल को मिट्टी में मिलाया जाता है। हरी खाद को अधिक गहरा नहीं मिलाना चाहिए क्योंकि यह पोषक तत्वों को बहुत गहराई तक दबा देता है। फसल को एक विशेष अवस्था पर खेत में पलटने से ही अधिकतम नाईट्रोजन का लाभ मिल पाता है। यह प्रक्रिया बहुत महंगी भी नहीं है। इसके बीज और जुताई का खर्च मिलाकर प्रति एकड़ डेढ़ हजार से ज्यादा नहीं लगता, जबकि इससे सैकड़ों क्विंटल हरी खाद मिल जाती है।
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हरी खाद के लाभ
- हरी खाद वाली फसलों से मिट्टी की स्थिति सुधरती है, जिसके कारण जलधारण क्षमता बढ़ती है।
- इनसे जमीन में नमी, आर्गेनिक कार्बन, नाईट्रोजन और सूक्ष्मजीव की संख्या वृद्धि में सुधार होता है।
- ये फसलें मिट्टी की संरचना में सुधार के साथ-साथ मिट्टी में जैविक गतिविधि को बढ़ाती हैं।
- हरी खाद वाली फसल खरपतवारों को दबाने व पशु चारा प्रदान करने में मदद करती हैं।
- हरी खाद की फसलों की जड़ वायुमंडल में मौजूद नाईट्रोजन को मिट्टी में एकत्रित करती हैं।
हरी खाद के प्रयोग में मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जलधरण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण में भी कमी होती है। - हरी खाद खेत को फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज और लोहा आदि तत्व मुहैया कराती है।
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