बायोफ्लॉक तकनीक से करें मछली पालन होगी लाखों की कमाई
बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन कैसे करें, लागत, मुनाफा, नुकसान और फायदे
देश में खेती के बाद मछली पालन से कई किसान भाई लाखों रूपए की कमाई कर रहे है। अब बायोफ्लॉक तकनीक आ गई है की किसान बिना तालाब के आसानी से मछली पालन कर बंपर कमाई कर सकते है। हम बात कर रहे है नीली क्रांति योजना की जिसे बायोफ्लॉक तकनीक 2022 भी कहा जाता है। इसके जरिए किसान कम स्थान में भी मछली पालन कर सकते है।
जहां पहले तालाबों और तालाबों में मछली पालन किया जाता था, लेकिन आज मछली किसान तालाबों में भी मछली पालन कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। भारत में नीली क्रांति के तहत आज मछली पालन की नई तकनीकों में वृद्धि हुई है।
ऐसी ही एक नई तकनीक है बायोफ्लॉक तकनीक। इस तकनीक के माध्यम से किसान अधिक मछली उत्पादन कर अच्छी कमाई कर सकते हैं। किसान भाइयों हम आपको नीली क्रांति योजना 2022 के तहत बायोफ्लोक तकनीक की पूरी जानकारी दे रहे हैं।
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बायोफ्लॉक तकनीक मछली पालन क्या है?
बायोफ्लॉक तकनीक एक विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का उपयोग करती है। इस बैक्टीरिया का नाम बायोफ्लोक है। इस तकनीक के तहत मछलियों को करीब 10 से 15 हजार लीटर की बड़ी टंकियों में डाला जाता है। इन टंकियों में पानी की उचित व्यवस्था की जाती है, पानी निकालने के साथ-साथ ऑक्सीजन की भी व्यवस्था की जाती है।
आपको बता दें कि मछलियां जो भी खाती है उसका 75 फीसदी मल के रूप में बाहर निकला देती हैं। यह मल पानी में बिखर जाता है। बायोफ्लॉक बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदल देते हैं, जिसे मछलियां खाती हैं। इस तकनीक से मछली के फ़ीड का एक तिहाई हिस्सा बच जाता है। इसके अलावा पानी भी साफ रहता है।
बायोफ्लोक तकनीक से क्या होगा फायदा
बायोफ्लॉक तकनीक के जरिये मछली पालन इन हिंदी करने से किसानों को कई फायदे होते हैं, जिससे लागत कम होती है और उनका मुनाफा बढ़ सकता है। किसान भाई खेती के साथ इस तकनीक से मछली पालन कर अपनी आय को कई गुना बड़ा सकते है।
कम लागत में अधिक उत्पादन
इस तकनीक के प्रयोग से मछली पालन कर कम लागत में अधिक से अधिक मछलियों का अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें मछलियों को खिलाने का खर्चा भी कम आता है और पानी साफ करने का खर्च भी कम होता है।
पानी का पूरा उपयोग
बायोफ्लॉक बैक्टीरिया के कारण टैंक का पानी लगातार साफ होता है, इसे रोजाना बदलने की जरूरत नहीं है, जिससे पानी की बचत होती है। इस तकनीक में टंकी में भरे पानी का पूरा उपयोग किया जाता है। वहीं दूसरी और तालाब में मछली पालन जोखिम भरा होता है।
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टैंक से मछली निकालना आसान
इस तकनीक में टंकियों में मछलियां होने से टंकियों का पानी आसानी से बदला जा सकता है। जबकि तालाब से मछलियों को निकालना बहुत कठिन कार्य होता है। टेंक से मछलियों को निकालना बहुत आसान है। इसके लिए पहले टैंक से पानी निकाल लें और बाद में मछली को निकाल लें।
वहीं यदि मछली में कोई रोग हो तो जिस टंकी में समस्या हो उसका ही इलाज करना पड़ता है। लेकिन तालाब की मछली में रोग होने पर पूरे तालाब में दवा डालनी पड़ती है।
टैंक में मछली पालन का खर्च
नेशनल फिशरीज डेवलपमेंट बोर्ड के मुताबिक अगर हम 7 टैंकों से मछली पालन शुरू करते हैं तो शुरुआत में इसमें करीब 7.5 लाख रुपये का खर्च आता है। इसमें मछली के बीज की कीमत उनके चारे में और कई तरह की टेस्टिंग किट को भी जोड़ा गया है। यह खर्च 15-15 हजार लीटर के टैंक में मछली पालने पर आता है। ये आधिकारिक आंकड़े हैं, जो अलग-अलग स्थानों में बदल सकते हैं।
मछली के आहार की बचत
टैंक सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है। ये बैक्टीरिया मछली के मल और अपशिष्ट भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं और ये प्रोटीन सेल मछलियों के लिए भोजन का काम करती हैं। वास्तव में, मछली जो खाती है उसका 75 प्रतिशत उत्सर्जित करती है।
यह मल पानी के अंदर रहता है। बायोफ्लॉक का उपयोग उसी मल को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया है। ये बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदल देते हैं, जिसे मछली खाती है। इस तरह एक तिहाई चारा बच जाता है।
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पांच लाख रुपए का होगा लाभ
अगर मछली साल में दो बार मछली बेचते हैं तो उन्हें 8 लाख रुपये का मुनाफा हो सकता है। इसमें एनएफडीबी ने डेप्रिसिएशन कॉस्ट लागत, ब्याज, लागत की पहली किस्त का भुगतान आदि भी काट लिया है। यह सब मिलाकर लगभग 3 लाख है। यानी सभी खर्चे काट कर अगली फसल के लिए पैसा रखने के बाद भी मछली पालकों को पहले साल में ही 5 लाख रुपये का लाभ मिल सकता है।
ऐसे समझें खर्च और फायदे का गणित
यदि कोई मछली किसान 7 टंकियों में मछली पालन करता है, तो आप पहली फसल के अंत तक लगभग 5.5 लाख कमा लेंगे। यानी आपने 7.5 लाख का निवेश कर करीब 5.5 लाख की कमाई की है। अब अगर अगली खेती के लिए ऑपरेशन खर्च अगर आप 1.5 निकालते हैं तो आपका मुनाफा 4 लाख हो जाता है।
पहली फसल के बाद, आप कम लाभ देख सकते हैं क्योंकि आपने पूंजीगत लागत के लिए 6 लाख रुपये खर्च किए हैं, जिससे आपने संपूर्ण बुनियादी ढांचा तैयार किया है। दूसरी फसल के बाद भी आपको लगभग 5.5 लाख रुपये का लाभ होगा।
इसमें से अगर 1.5 लाख अगली फसल के लिए निकाल दिए जाते हैं तो 4 लाख बच जाते हैं। इस तरह साल में दो बार मछली पालन करने से आपको कुल 8 लाख रुपये मिलते हैं, जिसमें से 3 लाख की लागत को हटाकर 5 लाख रुपये का शुद्ध लाभ मिल सकता है।
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बायोफ्लॉक तकनीक मछली पालन ट्रेनिंग सेंटर
मछली पालन की बायोफ्लॉक तकनीक में प्रशिक्षण प्राप्त करने के इच्छुक किसान कृषि विज्ञान केंद्र, रायपुर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.) से संपर्क कर सकते हैं। यहां बायोफ्लोक तकनीक की मदद से किसानों, युवाओं, महिलाओं को मछली उत्पादों पर प्रशिक्षण दिया जाता है।
बायोफ्लॉक तकनीक का फायदा क्या हैं?
- आपके पास बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के लिए सिर्फ जगह होनी चाहिए।
- तालाब खोदने की जरूरत नहीं है। इसलिए जमीन कैसी भी हो चलेगा।
- इस तकनीक से शहरों में भी मछली पालन किया जा सकता है।
- पानी की काफी बचत होती है। टंकियों की सफाई आसानी से हो जाती है।
- यदि एक टंकी की मछली में कोई रोग हो जाता है तो उसके दूसरी टंकी में फैलने का खतरा नहीं रहता है।
- तालाब में मछली पालन के लिए बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता होती है, जबकि टैंक में कम।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना 2022
बायोफ्लॉक मछली पालन को देश में नीली क्रांति के रूप में देखा जाता है। मछली पालन के लिए सरकार तमाम तकनीकी जानकारियों के साथ-साथ आर्थिक मदद भी करती है। अब मछली पालन के लिए अलग से किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी शुरू की गई है।
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में मछली पालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी। इसका लक्ष्य ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ के तहत सतत रूप से मत्स्य पालन में नीली क्रांति लाना है। ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना 2022’ का मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करना है।
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