MP NEWS: सोयाबीन की खेती के लिए जरूरी सलाह: सही समय, अच्छी किस्में और बुवाई के तरीके
समय पर बुवाई, सही बीज और सही तकनीक से सोयाबीन की पैदावार बढ़ाएं

MP NEWS: सोयाबीन की खेती से अच्छी पैदावार के लिए किसानों को सही जानकारी और सही समय पर तैयारी करना बहुत जरूरी है। सोयाबीन न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ाता है, बल्कि मिट्टी की ताकत भी बनाए रखता है। खासकर मध्यप्रदेश और मालवा क्षेत्र में सोयाबीन प्रमुख फसल है। आइए जानें सोयाबीन की बुवाई से जुड़ी आसान और जरूरी बातें-
बुवाई का सही समय कब है?
सोयाबीन की बुवाई तभी करें जब मानसून में कम से कम 100 मिमी बारिश हो चुकी हो। मध्यप्रदेश में बुवाई का सही समय 20 जून से 5 जुलाई तक माना जाता है। सही समय पर बुवाई से पौधों को सही नमी मिलेगी और अंकुरण अच्छा होगा।
खेत की तैयारी ऐसे करें
मानसून आने पर खेत को कल्टीवेटर और पाटा से अच्छी तरह समतल और भुरभुरा बनाएं।
बुवाई से पहले खेत में 5–10 टन/हेक्टेयर गोबर की खाद या 2.5 टन/हेक्टेयर मुर्गी की खाद डालें। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी और फसल को पोषक तत्व मिलेंगे।
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कौन-सी किस्में सबसे अच्छी रहेंगी?
90–100 दिन में तैयार होने वाली किस्में: JS 20‑29, JS 20‑34 (अगर बाद में आलू, प्याज, गेहूं उगाना हो)।
100–120 दिन में पकने वाली किस्में: JS 95‑60, NRC 37 (दो फसल चक्र के लिए)।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि फसल को सुरक्षित रखने के लिए 2–3 किस्मों का संयोजन करें।
बीज की क्वालिटी और बीज उपचार सोयाबीन की खेती
बीज का अंकुरण परीक्षण जरूर कराएं – कम से कम 70% अंकुरण होना चाहिए।
बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक, कीटनाशक और जैविक उपचार से तैयार करें:
फफूंदनाशक: एज़ोक्सीस्ट्रोबिन + थायोफिनेट मिथाइल + थायमेथोक्सम (10 मि.ली./किग्रा) या कार्बोक्सिन + थाइरम (3 ग्राम/किग्रा)।
कीटनाशक: थायमेथोक्सम 30 FS या इमिडाक्लोप्रिड (10 मि.ली./किग्रा)।
जैविक कल्चर: ब्रैडीराइजोबियम + PSB कल्चर (5 ग्राम/किग्रा) + ट्राइकोडर्मा (10 ग्राम/किग्रा)।
क्रम में करें उपचार: पहले फफूंदनाशक, फिर कीटनाशक, फिर जैविक कल्चर।
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बुवाई विधि और बीज दर
बुवाई के लिए सीड ड्रिल, रिज-फरो या रेज्ड बेड का इस्तेमाल करें।
कतार से कतार की दूरी 30 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 5–7 सेमी रखें।
बीज दर: 80–90 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
गहराई: 2–3 सेमी तक बुवाई करें।
खाद डालें: 25:60:40:20 (N:P:K:S) किग्रा/हेक्टेयर।
पोषक तत्व (NPKS) का प्रबंधन
यूरिया – 56 किग्रा
SSP – 375–400 किग्रा
MOP – 67 किग्रा
याDAP – 125 किग्रा + MOP + 25 किग्रा बेंटोनाइट सल्फर
ज़िंक सल्फेट (25 किग्रा) और आयरन सल्फेट (50 किग्रा) जरूरत अनुसार डाल सकते हैं।
खरपतवार नियंत्रण जरूरी
खरपतवार पैदावार को 30–50% तक घटा सकते हैं, इसलिए नियंत्रण करें:
बुवाई से पहले (PPI): डायक्लोसुलम + पेंडीमिथालीन या फ्लूक्लोरलिन का छिड़काव करें।
बुवाई के तुरंत बाद (PE): डायक्लोसुलम 84% WDG या सल्फेन्त्राजोन 39.6% SC या पेंडीमिथालीन 30% EC का छिड़काव करें।
छिड़काव में प्रति हेक्टेयर 450–500 लीटर पानी (नेपसैक स्प्रेयर) या 120 लीटर (पावर स्प्रेयर) उपयोग करें।
रोग और कीट नियंत्रण
बीज उपचार से कई बीमारियों जैसे चारकोल रॉट, पत्ती धब्बा, कॉलर रॉट से बचाव होता है।
बीज थ्रेसिंग के लिए फ्लक्सापायरोक्साड (1 मि.ली./किग्रा) असरदार है।
खेत में कीटों की निगरानी और समय पर स्प्रे जरूरी है।
विषम परिस्थिति में क्या करें
BBF या रिज-फरो पद्धति अपनाएं ताकि जल निकासी बनी रहे।
जरूरत पर खेत से पानी निकासी का प्रबंध करें।
प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा के लिए फसल बीमा जरूर कराएं।
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क्षेत्र अनुसार सलाह (मध्यप्रदेश)
मध्य क्षेत्र: 20 जून से 5 जुलाई, बीज दर – 65 किग्रा/हेक्टेयर, कतार दूरी – 45 सेमी।
उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र: 15–30 जून, बीज दर – 55 किग्रा/हेक्टेयर।
उत्तर मैदानी क्षेत्र: 20 जून से 5 जुलाई, बीज दर – 65 किग्रा/हेक्टेयर।
पूर्वी क्षेत्र: 15–30 जून, बीज दर – 55 किग्रा/हेक्टेयर।
दक्षिण क्षेत्र: 15–30 जून, बीज दर – 65 किग्रा/हेक्टेयर, कतार दूरी – 30 सेमी।
अगर किसान सही समय पर बुवाई, अच्छी किस्म और सही तकनीक अपनाते हैं, तो 20–30% तक पैदावार बढ़ाना संभव है। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।
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