खास तरीके से करें खाद का प्रयोग, खरीफ फसल में होगा जबरदस्त फायदा
कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट और हरी खाद का प्रयोग करें किसान
देश में कृषि में सबसे पहले नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग हुआ। फिर धीरे-धीरे फॉस्फेटिक और पोटैशिक खाद का प्रयोग चलन में आ गया। इस कारण मिट्टी से प्राप्त किए जाने वाले अन्य पोषक तत्व जैसे मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कॉपर, मैग्नीज, बोरान, मालेब्डनम एवं क्लोरीन की सतत् कमी होती रही और पौधों को ये तत्व आवश्यकतानुसार उपलब्ध नहीं हो सके।
इस वजह से अधिकांश क्षेत्रों में उत्पादन में ठहराव आया और मिट्टी में भी इसकी कमी देखी गई। मृदा विशेषज्ञों के अनुसार मृदा में भौतिक, रसायनिक और जैविक क्रियाओं में परिवर्तन हुआ। फिर यह कमी महसूस की गई कि मृदा उर्वरता का संतुलन इस प्रकार किया जाए कि फसल की आवश्यकता के अनुसार उन्हें आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें।
अधिक बरसात होने के कारण उत्तर बिहार में पिछले साल जलजमाव हो गया था। कुछ इलाके में जुलाई के अंतिम सप्ताह व अगस्त की शुरुआत में धान की रोपाई करने वाले किसानों को भरपूर उपज मिली थी।
इसी तरह कम रासायनिक खाद का प्रयोग के बाद भी गेहूं की भी अच्छी पैदावार हुई थी। औद्योगीकरण के पहले उर्वरकों की कमी के कारण देश में जैविक खादों के माध्यम से खेती होती थी। लेकिन हरित क्रांति की शुरुआत के साथ उर्वरकों का बहुत ज्यादा मात्रा में प्रयोग शुरू हुआ।
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समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के उदेश्य
फसल से वांछित उपज भी मिले और मृदा स्वास्थ्य सुरक्षित रहे। इसके लिए स्थान विशेष एवं फसल विशेष को देखते हुए आवश्यकतानुसार अकार्बनिक एवं कार्बनिक स्रोतों का उचित सम्मिश्रण की सोच के साथ खेती को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।
इस तकनीकीको समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के नाम से भी जाना जाता है. इसका उदेश्य जैविक खादों और जैव खाद का प्रयोग करके मृदा उत्पादकता में बढ़ोतरी और पर्यावरण को संरक्षित रखने के साथ-साथ अधिक फसल उत्पादन करना एवं कृषकों को अधिक लाभ देना है। समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के मुख्य लक्ष्य है।
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रासायनिक खाद से घटने लगी उपज
कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट और हरी खाद का प्रयोग संसार में प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। मिट्टी में गोबर की खाद का प्रभाव कई वर्षों तक देखा गया, क्योंकि इसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थ धीरे-धीरे पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराते रहते हैं।
रासायनिक उर्वरक के अत्यधिक प्रयोग किए जाने के कारण फसल की उपज कुछ वर्षों तक तो स्थाई रही, लेकिन बाद में धीरे-धीरे घटने लगी। मिट्टी में भी कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होने लगी।
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पोषक तत्व प्रबंधन का मुख्य
खाद के अधिक प्रयोग से मृदा में जीवाणुओं की सक्रियता कम हो जाती है, जिसका पोषक तत्व प्रबंधन पर बहुत बड़ा असर देखा गया। तो आइए समझते हैं कि आखिर समेकित पोषक तत्व प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- समुचित मात्रा में पौधे को समय-समय पर उर्वरक उपलब्ध कराना।
- कृषि की उत्पादकता के लिए कार्बनिक खाद, हरी खाद, अकार्बनिक उर्वरकों के समुचित प्रयोग को किसानों के बीच में ले जाना।
- फसल अवशेषों मुख्य रूप से गन्ना, धान, गेहूं और मक्का के अवशेषों को कार्बनिक पदार्थ के रूप में खेत में उपयोग करके उनके अवशेषों को पुनः उसी खेत में छोड़ देना। इसे अगली फसल लेने से पहले खेतों में ही मिला देना, जिससे ये कंपोस्ट बन जाएं।
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समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के घटक
समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के मुख्य घटक हरी खाद, वर्मी कंपोस्ट, जैव उर्वरक तथा रासायनिक उर्वरक मुख्य रूप से हैं. इसमें जैविक खाद की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
कार्बनिक खाद का प्रयोग
गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, हरी खाद और कई प्रकार की खलियां आदि कार्बनिक खादों में मृदा को लगभग सभी पोषक तत्व को उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान करती हैं। इनसे कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिट्टी में मिलता है।
जिससे समय-समय पर पोषक तत्वों की आपूर्ति पौधों को होती रहती है। इससे मिट्टी की भौतिक और रासायनिक अवस्था भी ठीक रहती है। साथ ही साथ, मिट्टी के स्वास्थ्य और उसके गुणों में वृद्धि होती है।
पौधों की वृद्धि के लिए जरुरी पोषक तत्व
पौधों की सामान्य वृद्धि एवं विकास के लिए कुल 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी भी पोषक तत्व की कमी होने पर पौधे सबसे पहले उस तत्व की कमी को दर्शाते हैं।
कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पौधे हवा और पानी से लेते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम को पौधे मिट्टी से अधिक मात्रा में प्राप्त करते हैं, इसलिए इन्हें प्रमुख पोषक तत्व कहते हैं।
कैल्शियम, मैग्नेशियम और गंधक को पौधे अपेक्षाकृत कम मात्रा में मिट्टी से प्राप्त करते हैं, इसलिए इन्हें गौण पोषक तत्व कहते हैं. लोहा, जस्ता, मैंगनीज, तांबा, बोरान, निकिल, मोलिब्डनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है, इन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व कहते हैं।
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