सोयाबीन की बुवाई से पहले इन बातों का रखें ध्यान, जल्दबाजी से हो सकता है नुकसान
soyabean ki fasal kab or kaise kare 4 इंच बारिश होने के बाद ही करें सोयाबीन की बुवाई, जल्दबाजी से हो सकता है नुकसान
soyabean ki fasal kab or kaise kare किसान भाइयों से निवेदन है की सोयाबीन की फसल की बुवाई से पहले कुछ खास बातों का ध्यान रखें जिससे उनको नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। हमने अपने इस लेख में सोयबीन कब करें कैसे करें सहित तमाम जानकारियां दी है। जिसका फायदा उठाकर किसान सोयाबीन की फसल से अच्छा उत्पादन ले सकते है। तो चलिए शुरू करते है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में गत वर्ष खरीफ मौसम में 513350 हेक्टेयर में फसल बुवाई की गई थी, जिसमें 509620 हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई जिले के किसानों द्वारा की गई है। सोयाबीन के अलावा अन्य फसलें (मूंग/उड़द/अरहर/मक्का) का क्षेत्र 3680 हेक्टेयर था। इस वर्ष खरीफ मौसम जिले का लक्ष्य 513340 हेक्टेयर रखा गया है, जिसमें सोयाबीन फसल का रकबा लगभग 9000 हेक्टेयर कम कर दूसरी फसलों मूंग/उड़द/अरहर/मक्का का क्षेत्रफल लगभग 9000 हेक्टेयर बढाने का लक्ष्य रखा गया है।
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कृषि अधिकारी दे रहे जानकारी
फसल विविधीकरण कराने एवं प्राकृतिक खेती को बढावा देने के लिए कृषि विभाग के द्वारा 10 से 25 मई 2022 तक कृषि पखवाड़ा के माध्यम से मैदानी कृषि विस्तार अधिकारियों द्वारा जिले के किसानों को निम्नानुसार तकनीकी मार्गदर्शन दिया जैसे- फसल विविधीकरण, प्राकृतिक खेती, मृदा परीक्षण के महत्व, बीजोपचार के महत्व, रेज़्डबेड पद्धती से फसल बुवाई के लाभ, मिश्रित खेती के लाभ आदि विषयों पर किसानों को जानकारी दी गई।
सोयाबीन की बोवनी का सही समय और तरीका
जून के अंतिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है। बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिये। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात् बोनी की बीज दर 5-10 प्रतिशत बढ़ा देना चाहिये। कतारों से कतारों की दूरी 30 से.मी. (बोनी किस्मों के लिये) तथा 45 से.मी. बड़ी किस्मों के लिये। 20 कतारों के बाद एक कूंड़ जल निथार तथा नमी सरंक्षण के लिये खाली छोड़ देना चाहिये। बीज 2.50 से 3 से.मी. गहरा बोयें।
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सोयाबीन में खरपतवार कब करें
फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारों को नश्ट करने के लिये क्यूजेलेफोप इथाइल 400 मिली प्रति एकड़ अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये इमेजेथाफायर 300 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव की अनुशसा है।
नींदानाशक के प्रयोग में बोने के पूर्व फ्लुक्लोरेलीन 800 मिली प्रति एकड़ आखरी बखरनी के पूर्व खेतों में छिड़कें और दवा को भलीभाँति बखर चलाकर मिला देवें। बोने के पश्चात एवं अंकुरण के पूर्व एलाक्लोर 1.6 लीटर तरल या पेंडीमेथलीन 1.2 लीटर प्रति एकड़ या मेटोलाक्लोर 800 मिली प्रति एकड़ की दर से 250 लीटर पानी में घोलकर फ्लैटफेन या फ्लैटजेट नोजल की सहायता से पूरे खेत में छिड़काव करें।
तरल खरपतवार नाशियों के स्थान पर 8 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से ऐलाक्लोर दानेदार का समान भुरकाव किया जा सकता है। बोने के पूर्व एवं अंकुरण पूर्व वाले खरपतवार नाशियों के लिये मिट्टी में पर्याप्त नमी व भुरभुरापन होना चाहिये।
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रोग लगने से पहले बचाए सोयाबीन की फसल को
- फसल बोने के बाद से ही फसल निगरानी करें। यदि सम्भव हो तो लाइट ट्रेप तथा फेरोमेन टूब का उपयोग करें।
- बीजोपचार आवश्यक है। उसके बाद रोग नियंत्रण के लिये फंफूद के आक्रमण से बीज सड़न रोकने हेतु कार्बेंडाजिम 1 ग्राम / 2 ग्राम थीरम के मिश्रण से प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित करना चाहिये। थीरम के स्थान पर केप्टान एवं कार्बेंडाजिम के स्थान पर थायोफेनेट मिथाइल का प्रयोग किया जा सकता है।
- पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फुंद जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिये कार्बेंडाजिम 50 डब्ल्यू.पी. या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यू.पी. 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिये। पहला छिड़काव 30-35 दिन की अवस्था पर तथा दूसरा छिड़काव 40-45 दिन की अवस्था पर करना चाहिये।
- गेरुआ प्रभावित क्षेत्रों (जैसे बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी) में गेरुआ के लिये सहनशील जातियां लगायें तथा रोगों के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही 1 मि.ली. प्रति लीटर की दर से हेक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या ऑक्सीकार्बोजिम 10 ग्राम प्रति लीटर की दर से ट्रायएडिमीफान 25 डब्ल्यूपी दवा के घोल का छिड़काव करें।
- बैक्टीरियल पश्च्यूल नामक रोग को नियंत्रित करने के लिये स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 पीपीएम 200 मिग्रा दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कॉपर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में मिश्रण करना चाहिये। इसके लिये 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन एवं 20 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दवा का घोल बनाकर उपयोग कर सकते हैं।
- विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग व वड व्लाइट रोग प्राय: एफ्रिडस सफेद मक्खी, थ्रिप्स आदि द्वारा फेलते हैं। अत: केवल रोग रहित स्वस्थ बीज का उपयोग करना चाहिये एवं रोग फेलाने वाले कीड़ों के लिये थायोमेथेक्जोन 70 डब्ल्यू एस. से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों का खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्स 10 ई.सी., 400 मि.ली. प्रति एकड़, मिथाइल डेमेटान 25 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, डायमिथोएट 30 ईसी 300 मिली प्रति एकड़, थायोमिथेजेम 25 डब्ल्यू जी 400 ग्राम प्रति एकड़।
- पीला मोजेक प्रभावित क्षेत्रों में रोग के लिये ग्राही फसलों (मूंग, उड़द, बरबटी) की केवल प्रतिरोधी जातियां ही गर्मी के मौसम में लगायें तथा गर्मी की फसलों में सफेद मक्खी का नियमित नियंत्रण करें।
- नीम की निम्बोली का अर्क डिफोलियेटर्स के नियंत्रण के लिये कारगर साबित हुआ है।
कृषि विभाग द्वारा दी जाती है सलाह
कृषि विभाग द्वारा वर्तमान समय हेतु जिले के किसानों को सलाह दी जाती है कि मानसून के आगमन के पश्चात न्यूनतम 100 मिमी वर्षा होने पर ही सोयाबीन की बुवाई करें। फसल विविधीकरण को अपनायें, सोयाबीन फसल के अलावा कुछ क्षेत्र में दूसरी फसलें जैसे मूंग, उड़द, अरहर, मक्का की भी बुवाई करें।
सोयाबीन फसल की कम से कम 2-3 प्रजातियों की बुवाई करें। फसल बुवाई से पूर्व बीजोपचार जरूर करें। फसल की बुवाई रैज़्डबेड/रिज एण्ड फरो विधि से बुवाई करें। खाद/उर्वरक का संतुलित उपयोग करें। कुछ क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को अपनायें। अधिक जानकारी के लिए नज़दीकी कार्यालय वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी से सम्पर्क करें।
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सोयाबीन फसल की कटाई एवं गहाई
अधिकांश पत्तियों के सूख कर झड़ जाने पर और 10 प्रतिशत फलियां के सूख कर भूरी हो जाने पर फसल की कटाई कर लेना चाहिये। पंजाब 1 पकने के 4-5 दिन बाद, जे.एस. 335, जे.एस. 76-205 एवं जे.एस. 72-44, जेएस 75-46 आदि सूखने के लगभग 10 दिन बाद चटकने लगती है।
soyabean ki fasal kab or kaise kare कटाई के बाद गट्ठों को 2-3 दिन तक सुखाना चाहिये। जब कटी फसल अच्छी तरह सूख जाये तो गहाई कर दोनों को अलग कर देना चाहिये। फसल गहाई थ्रेसर, ट्रेक्टर, बैलों तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चाहिये। जहां तक सम्भव हो बीज के लिये गहाई लकड़ी से पीट कर करना चाहिये, जिससे अंकुरण प्रभावित न हो।
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