सरसों की खेती, किस्में, बीज उपचार, खाद, सिंचाई, कीट प्रबंधन

Sarso kheti से किसान अपनी आय को आसानी से दोगुनी कर सकते है

देश में सरसों के तेल की बढ़ती मांग और दाम को देखते हुए Sarso kheti में किसानों के लिए अपार संभावनाएं हैं। इसके पौधे को पूर्ण रूप से बढ़ने और अच्छी उपज प्राप्त के लिए पोषक तत्वों की बेहद जरूरत होती है। अगर किसी एक पोषक तत्व का भी अभाव हो जाए, तो पौधे में उपज क्षमता कम हो जाती है।

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सरसों की खेती से कमाई

सरसों की फसल में पोषक तत्वों की कमी होने का सीधा असर उसके पैदावार पर होता है। इसके अलावा, कई बार किसानों को इसकी कमी के लक्षण की सही जानकारी ना होने के चलते नुकसान झेलना पड़ता है। अगर किसान भाई अपने खेतों में सरसों चाहते है तो आज हम उन्हें सरसों की खेती कैसे करें बताएँगे। पोषक तत्वों के प्रबंधन के अलावा सरसों की खेती और sarson ki kheti kaise karen की पूरी जानकारी दी जो निम्नलिखित है:

Sarso kheti में भूमि का चुनाव और तैयारी

  • सरसों की खेती में दोमट या बलुई भूमि जिसमें जल का निकास अच्छा हो अधिक उपयुक्त होती है।
  • पानी के निकास का समुचित प्रबंध न हो तो प्रत्येक वर्ष लाहा लेने से पूर्व ढेचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए।
  • अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी.एच.मान. 7 होना चाहिए।
  • अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु उपयुक्त नहीं होती है।
  • सिंचित क्षेत्रों में खरीफ फसल के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयाँ तवेदार हल से करनी चाहिए।
  • सिंचित क्षेत्र में जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए, जिससे खेत में ढेले न बनें।
  • गर्मी में गहरी जुताई करने से कीड़े मकौड़े व खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
  • बुवाई से पूर्व भूमि में नमी की कमी है, तो खेत में पलेवा करना चाहिए।
  • बुवाई से पूर्व खेत खरपतवार रहित होना चाहिए।

बारानी क्षेत्रों में प्रत्येक बरसात के बाद तवेदार हल से जुताई कर नमी को संरक्षित करने के लिए पाटा लगाना चाहिए, जिससे कि भूमि में नमी बनी रहे।

सरसों की उन्नत किस्में (Sarso kheti)

पूसा बोल्ड: यह किस्म 110-140 दिनों में पक जाती है जो 2000-2500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

पूसा जयकिसान (बायो 902): यह किस्म 155-135 दिनों में पक जाती है जो 2500-3500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

क्रान्ति: सरसों की यह किस्म 125-135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है जो 1100-2135 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

आर एच 30: यह किस्म 130-135 दिनों में पकती है जो 1600-2200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

आर एल एम 619: यह किस्म 140-145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है जो 1340-1900 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक की उपज देती है।

पूसा विजय: यह किस्म 135-154 दिनों में पकती है और 1890-2715 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

पूसा मस्टर्ड 21: सरसों की यह किस्म 137-152 दिनों में पककर तैयार होती है जो 1800-2100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उपज देती है।

पूसा मस्टर्ड 22: यह किस्म 138-148 दिनों में पककर तैयार हो जाती है जिसकी उपज क्षमता 1674-2528 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की है।

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Sarso kheti में बीज उपचार कैसे करें

Sarso kheti सरसों की भरपूर पैदावार हेतु फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिये बीजोपचार आवश्यक है। मिटटी जनित एवं बीज जनित रोगो से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम-12 + मैंकोजेब-63 (कपेनी) 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज या थायोफिनेट मिथाइल (हेक्सास्टोप) 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करें। फसल की प्राम्भिक अवस्था में रस चूसक कीटों से बचाव के लिए थायोमेथाक्साम (ऑप्ट्रा एफ-एस) 8 मिली प्रति किलो बीज से उपचारित करें।

Sarso kheti में जैव उर्वरक का उपयोग कैसे करें

पी.एस.बी.(स्फुर घोलक) 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बोने से कुछ घंटे पूर्व टीकाकरण करें। पी.एस.बी. 2.50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में मिलाने से स्फुर को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराने में सहायक होता है।

Sarso kheti की बुवाई और विधि

उचित समय पर Sarso kheti को बुवाई से उत्पादन तो अधिक होता ही है, साथ ही साथ फसल पर रोग व कीटों का प्रकोप भी कम होता है। इसके कारण पौध संरक्षण पर आने वाली लागत से भी बचा जा सकता है।

बुवाई का समय: सरसों की फसल को बारानी क्षेत्र में 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिए।

बुवाई की विधि: बुवाई देशी हल या सरिता या सीड़ ड्रिल से कतारों में करें। इसके अलावा, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें और पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेंटीमीटर रखें। बीज को 2-3 सेंटीमीटर से अधिक गहरा न बोयें, अधिक गहरा बोने पर बीज के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

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Sarso kheti में उर्वरक प्रबंधन

ग्रोप्लस उर्वरक (Growplus Fertilizer)

मध्यप्रदेश के Sarso kheti कई क्षेत्रों की मृदाओं में सल्फर(गंधक) “ग्रोप्लस” तत्व की कमी देखी गई है, जिसके कारण फसलोत्पादन में दिनों दिन कमी होती जा रही है तथा तेल की प्रतिशत भी कम हो रही है। इसके लिए 12-16 किलोग्राम सल्फर(गंधक) तत्व प्रति एकड़ की दर से देना आवश्यक है। जिसकी पूर्ति ग्रोप्लस, ग्रोमोर(डबल हॉर्स सुपर) सुपर फास्फेट, ग्रोमोर 20:20:0:13(अमोनियम फास्फेट सल्फेट), अमोनियम सल्फेट आदि उर्वरकों के उपयोग से की जा सकती है।

एनरिच उर्वरक (NRICH Fertilizer)

कोरोमंडल प्राइवेट लिमिटेड का एक और प्रोडक्ट ‘NRICH’ है, जो Sarso kheti में उपज क्षमता को बढ़ाता है। ऑर्गेनिक कार्बन का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है। यह एक तरह की जैविक खाद है, जो कीटों और रोगों को कम करता है। यह रासायनिक उर्वरक उपयोग को कम करने में मदद करता है। मिट्टी में जल धारण क्षमता को बढ़ाता है यह पोषक तत्वों की निक्षालन को कम करता है।

सरसों की खेती की खुटाई

सरसों की खुटाई (टॉपिंग): जब सरसों करीब 30-35 दिन की व फूल आने की प्रारंभिक अवस्था पर हो, तो सरसों के पौधों को पतली लकड़ी से मुख्य तने की ऊपर से तुड़ाई कर देना चाहिए। इस प्रक्रिया को करने से मुख्य तना की वृद्धि रूक जाती है तथा शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है, जिसके फलस्वरूप उपज में करीब 10 से 15 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।

सरसों की खेती की सिंचाई

सिंचाईः उचित समय पर Sarso kheti सिंचाई करने से उत्पादन में 25-50 प्रतिशत तक वृद्धि पाई गई है. इस फसल में 1-2 सिंचाई करने से लाभ होता है। सरसों की बोनी बिना पलेवा दिये की गई हो, तो पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन पर करें। इसके बाद अगर मौसम शुष्क रहे अर्थात पानी ना बरसे तो बोनी के 60-70 दिन की अवस्था पर फूल आने पर फैनटैक् प्लस 100 मि.ली को पानी के साथ मिलाकर प्रति एकड़ स्प्रे करें।

Sarso kheti में कीट व रोग और उसका प्रबंधन

एफिड्स (Aphids): शिशु और वयस्क दोनों पौधे के विभिन्न हिस्सों अर्थात पुष्पक्रम, पत्ती, तना, टहनी और फली से कोशिका रस चूसते हैं। भारी संक्रमण में पौधे अवरुद्ध हो जाते हैं, सूख जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कोई फली और बीज का गठन नहीं होता है। एफिड्स हनीड्यू स्रावित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप “Sooty Moulds” होता है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए फेंडाल 350 – 400 मिली प्रति एकड़ या ऑष्ट्रा 50 ग्राम एकड़ की मात्रा का स्प्रे करें।

पेंटेड बग (Painted Bug): शिशु और वयस्क दोनों पत्तियों और टहनी से कोशिका रस चूसते हैं। यह पौधे के सूखने को पूरा करने के लिए समवर्ती रूप से पत्तियों के सफेद होने का कारण बनता है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए ऑष्ट्रा एफ एस 8 मिली लीटर प्रति किलोग्राम बीज उपचार करके फसल की सुरक्षा की जा सकती है।

बिहार हेयरी कैटरपिलर (Bihar Hairy Caterpillar): लार्वा लाल-पीला होता है और इसका शरीर बालों से ढका रहता है। लार्वा पत्तियों के मार्जिन से और गंभीर संक्रमण में पूरे पौधे को विघटित कर देता है। पत्तियां क्लोरोफिल से रहित और लगभग पारदर्शी हो जाती हैं। इसमें एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पलायन करने की आदत है।

प्रबंधन: इसके बचाव के लिए बेन्ज़र 100 ग्राम प्रति एकड़ की मात्रा का घोल बनाकर स्प्रे करें।

लीफ माइनर (Leaf Minor): यह कीट दिसंबर से मई तक सक्रिय रहता है और शेष अवधि को प्यूपा अवस्था में मिट्टी में पार करता है। गंभीर संक्रमण के मामले में, हमला से संक्रमित पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे का बढ़ती क्षमता कम हो जाता है। इसकी क्षति अक्सर पुरानी पत्तियों पर अधिक प्रमुख होती है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए नीमाजल 100 – 150 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

मस्टर्ड सॉ फ्लाई (Mustard Saw Fly): यह पत्तियों में असमान छेद बनाता है। यह रोपाई के चरण में फसल पर हमला कर अपना प्रकोप डालता है और तीन से चार सप्ताह की पुरानी फसल इसको सबसे अधिक पसंद आती है।

प्रबंधन: इसके बचाव के लिए फेंडाल का 350-400 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

लीफ वेबर (Leaf Webber): नए लार्वा कोमल पत्तियों की क्लोरोफिल खाने का काम करते हैं। बाद में यह पत्तियों, फूलों की कलियों और पुष्पक्रमों के ऊपरी चंदवा पर फ़ीड करता है, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की वृद्धि गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाती है।

प्रबंधन: इसके बचाव के लिए आपको फेंडाल 350 – 400 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करना होगा।

अल्टेरनेरिया ब्लाइट डिजीज (Alternaria Blight Disease): यह रोग निचली पत्तियों पर छोटे गोलाकार भूरे रंग के परिगलित धब्बों के रूप जो धीरे-धीरे आकार में वृद्धि करते हैं। गंभीर मामलों में ब्लाइटनिंग और डिफोलिएशन दिखाते हुए बड़े पैच को कवर करने के लिए एकजुट होते हैं। इससे गोलाकार, गहरे भूरे रंग के घाव फली पर विकसित होते हैं। साथ ही संक्रमित फलियां छोटे, विकृत और मुरझाए हुए बीज पैदा करती हैं।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

वाइट रस्ट (White Rust): स्थानीय संक्रमण के मामले में, पत्तियों पर सफेद मलाईदार पीले उभरे हुए पुस्टुल दिखाई देते हैं जो बाद में पैच बनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। आर्द्र मौसम के दौरान, सफेद जंग और डाउनी फफूंदी के मिश्रित संक्रमण से अतिवृद्धि और हाइपरप्लासिया के कारण स्टेम और पुष्प भागों की सूजन और विरूपण होता है और “हरिण सिर” संरचना विकसित होती है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करें।

डाउनी माइल्डियू (Downy Mildew): पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के सफेद अनियमित परिगलित पैच विकसित होते हैं। बाद में अनुकूल परिस्थितियों में धब्बे पर भूरे रंग के सफेद कवक विकास को भी देखा जा सकता है। सबसे विशिष्ट और स्पष्ट लक्षण पुष्पक्रम का संक्रमण है जो पुष्पक्रम की अतिवृद्धि का कारण बनता है और हरिण सिर संरचना विकसित करता है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए शुरुआती अवस्था में मारलेट 500 ग्रा प्रति एकड़ या जटायु 300 – 400 ग्रा प्रति एकड़ का स्प्रे करे और रोग के आने पर मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ का स्प्रे करें।

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पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew): लक्षण पत्तियों के दोनों किनारों पर गंदे सफेद, गोलाकार, आटे के पैच के रूप में दिखाई देते हैं। अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में पूरे पत्ते, तने, पुष्प भागों और फली प्रभावित होते हैं। पूरी पत्ती पाउडर द्रव्यमान के साथ कवर किया जा सकता है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ स्प्रे करें।

बैक्टेरियल ब्लाइट (Bacterial Blight/Black Rot): पत्ती का ऊतक पीला हो जाता है और क्लोरोसिस पत्ती के केंद्र की ओर पहुंचता है और वी आकार का क्षेत्र बनाता है जिसमें वी का आधार होता है। नसें भूरे से काले मलिनकिरण को दिखाती हैं। जमीनी स्तर से स्टेम पर गहरे रंग की लकीरें बनती हैं और धीरे-धीरे सड़ने के कारण तना खोखला हो जाता है। निचली पत्तियों का मिड्रिब क्रेकिंग, नसों का ब्राउनिंग और मुरझाना देखा जाता है।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ स्प्रे करें।

क्लब रॉट (Club Rot): इससे प्रभावित पौधे अवरुद्ध रहते हैं और रूट सिस्टम में बड़े क्लब के आकार के आउटग्रोथ के लिए छोटे नोड्यूल विकसित होते हैं। पत्तियां हल्के हरे या पीले रंग की हो जाती हैं और उसके बाद मुरझा जाती हैं व गंभीर परिस्थितियों में पौधे मर जाते हैं।

प्रबंधन: इससे बचाव के लिए शुरुआती अवस्था मे (Sarso kheti) मारलेट 500 ग्रा प्रति एकड़ या जटायु 300-400 ग्रा प्रति एकड़ का स्प्रे करे और रोग के आने पर मैगनाइट 200 मिली प्रति एकड़ स्प्रे करें।


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