Pica disease: अगर पशु खाने लगे मिट्टी, गोबर या कपड़ा, तो तुरंत अलर्ट हो जाएं

गाय, भैंस, बकरी, घोड़े और कुत्ते सभी में पाइका बीमारी देखी जा सकती है। मार्च से जून के बीच इसका खतरा ज्यादा रहता है, जब हरे चारे की कमी होती है।

Pica disease: पाइका पशुओं की एक खतरनाक बीमारी है, जिसमें वे ऐसी चीजें खाने लगते हैं जो खाने लायक नहीं होतीं, जैसे मिट्टी, गोबर, कागज, कपड़ा या यहां तक कि अपने बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह बीमारी आमतौर पर पोषण, खासकर मिनरल्स की कमी के कारण होती है। गाय, भैंस, बकरी, घोड़े और कुत्ते सभी में यह बीमारी देखी जा सकती है। मार्च से जून के बीच इसका खतरा ज्यादा रहता है, जब हरे चारे की कमी होती है।

पाइका बीमारी के कारण

पाइका बीमारी तब होती है जब पशु के आहार में जरूरी मिनरल्स की कमी हो जाती है। जैसे:

  • फॉस्फोरस, कोबाल्ट, और नमक की कमी

  • पेट में कीड़े (वर्म इंफेक्शन)

  • पाचन और पित्ताशय से जुड़ी बीमारियां

  • कम जगह में पशु को रखना

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पाइका बीमारी के प्रकार

पाइका बीमारी भी कई तरह की होती है:

  • कोप्रोफेजिया: पशु खुद या अन्य पशुओं का मल-गोबर खाने लगता है।

  • इन्फेंटोफेजिया: मादा पशु अपने छोटे नवजात बच्चों को खाने लगती है।

  • ऑस्टियोफेजिया: पशु मरे हुए जानवरों की हड्डियां चाटने लगता है।

  • साल्ट हंगर: पशु खुद की या दूसरे पशु की चमड़ी चाटने लगता है।

पाइका बीमारी के लक्षण

अगर आपके पशु में ये लक्षण दिखें तो सतर्क हो जाएं:

  • सामान्य आहार छोड़कर मिट्टी, कागज, गोबर जैसी चीजें खाना

  • शरीर का दुबला होना और चमड़ी चिपक जाना

  • दूध उत्पादन में गिरावट

  • आफरा (पेट फूलना) की समस्या

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पाइका बीमारी का इलाज कैसे करें?

अगर आपके पशु को पाइका हो गया है, तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • संतुलित और पौष्टिक आहार दें।

  • हर दिन 40-50 ग्राम मिनरल मिक्चर खिलाएं।

  • खाने में 50 ग्राम सादा नमक जरूर मिलाएं।

  • नांद में मिनरल मिक्चर की ईंट रखें ताकि पशु जरूरत के हिसाब से खुद खा सके।

  • फॉस्फोरस और विटामिन A, D, E के इंजेक्शन एक सप्ताह तक लगवाएं।

  • फाइबर युक्त चारा जैसे घास, पुआल, साइलेज दें।

  • पीने के पानी में फॉस्फोरस मिलाएं।

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पाइका बीमारी को समय रहते पहचानकर इलाज करना बहुत जरूरी है। सही पोषण, स्वच्छता और समय-समय पर कृमिनाशक दवाइयां देकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। पशुओं के खान-पान में संतुलन बनाए रखें ताकि उनका स्वास्थ्य और उत्पादन दोनों बेहतर बने रहे।


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