सोयाबीन की बुवाई के लिए खेत तैयार, 15 जून से शुरू होगा उपयुक्त समय
किसान 15 जून से पहले कर लें खेत की तैयारी, मानसून का करें इंतजार

देश भर के किसानों ने इस वर्ष की सोयाबीन की बुवाई के लिए अपने खेतों को तैयार कर लिया है। कृषि वैज्ञानिकों और सरकार की गाइडलाइन के अनुसार, सोयाबीन बुवाई का आदर्श समय 15 जून से शुरू होता है। यह समय मानसून की शुरुआत से मेल खाता है, जिससे खेतों में पर्याप्त नमी मिलती है और बीज का अंकुरण अच्छे से होता है। हालांकि अभी किसान मानसून की पहली अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं ताकि बुवाई की शुरुआत की जा सके।
सबसे अधिक सोयाबीन कहां होती है?
भारत में सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में होती है। मध्य प्रदेश को तो ‘सोयाबीन की राजधानी’ भी कहा जाता है क्योंकि यहां देश का सबसे बड़ा उत्पादन होता है। इसके अलावा गुजरात, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी इसकी खेती की जाती है।
सोयाबीन की बेहतर पैदावार के लिए उन्नत किस्में जरूरी
पिछले कुछ वर्षों से किसानों को पारंपरिक सोयाबीन किस्मों में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे:
पौधे की कम ऊंचाई,
फसल में वायरस का प्रकोप,
दाने झड़ने की समस्या (शेटरिंग),
और लगातार घटती उपज।
इन समस्याओं के चलते किसानों को न सिर्फ आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि खेती के प्रति उनका उत्साह भी कम हो रहा है।
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नए समाधान: JS-23-03 – उन्नत और अर्ली वैरायटी
इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर (मध्य प्रदेश) के वैज्ञानिकों ने कई साल की रिसर्च के बाद एक नई अर्ली किस्म JS-23-03 विकसित की है।
यह किस्म किसानों की सभी प्रमुख जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है, जैसे:
जल्दी पकने वाली किस्म: यह किस्म सिर्फ 88-90 दिनों में तैयार हो जाती है।
अच्छी ऊंचाई: हार्वेस्टर से आसानी से कटाई की जा सकती है, जिससे मजदूरी की लागत कम होती है।
वायरस और फूटने की समस्या नहीं: यह किस्म मजबूत और रोग प्रतिरोधक है।
उच्च उपज और गुणवत्ता: दानों का आकार अच्छा होता है और तेल की मात्रा भी संतोषजनक होती है।
इस किस्म से किसानों को क्या लाभ होंगे?
फसल चक्र में मदद: जल्दी पकने की वजह से खेत जल्दी खाली हो जाता है, जिससे किसान रबी की फसलें जैसे – लहसुन, प्याज, आलू, मटर, चना, शरबती गेहूं आदि समय पर बो सकते हैं।
कम लागत – ज्यादा मुनाफा: हार्वेस्टर से कटाई होने के कारण मजदूरी की बचत, और उच्च उपज के कारण अधिक उत्पादन मिलेगा।
जल्दी फसल, जल्दी बिक्री: जब फसल जल्दी तैयार होगी, तो किसान उसे मंडी में भीड़-भाड़ से पहले बेच सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर भाव मिल सकता है।
असिंचित क्षेत्र के लिए भी बेहतर: इस किस्म को कम पानी में भी उगाया जा सकता है, जिससे बरसात की नमी का सही उपयोग होता है।
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उन्नत किस्में ही भविष्य का रास्ता
आज के समय में जब खेती की लागत बढ़ रही है और उत्पादन घट रहा है, ऐसे में JS-23-03 जैसी नई किस्में किसानों के लिए आशा की किरण हैं। इससे न सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि किसान आर्थिक रूप से मजबूत भी होंगे।
कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों से सलाह लेकर किसान इस किस्म को अपना सकते हैं और समय पर बुवाई कर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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