बांस की खेती करने पर सरकार दे रही 50 फीसदी सब्सिडी
मध्य प्रदेश सरकार ने Baas ki kheti करने वाले किसानों को प्रति पौधा 120 रुपये की सब्सिडी देने का फैसला लिया है।
Baas ki kheti किसानों के लिए बांस हरा सोना यानी हरा सोना है। देवास जिले में विकासखंड देवास, सोनकच्छ, टोंकखुर्द, बागली, कन्नड़ और खातेगांव के 448 किसानों ने 541 हेक्टेयर भूमि पर 2,16,281 बांस लगाए हैं। देवास जिले में “एक जिला-एक उत्पाद” में किसानों को प्रेरित कर एक हजार एकड़ से अधिक क्षेत्र में कटंग बांस का रोपण किया गया है। मनरेगा के माध्यम से वन क्षेत्रों में बांस लगाकर 46 महिला स्वयं सहायता समूहों को रोजगार प्रदान किया गया है।
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किसान अब पारंपरिक खेती के बजाय बागवानी और कृषि-वानिकी पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसी फसलों में Baas ki kheti भी शामिल है। जिसमें कम खर्च में अच्छा मुनाफा मिल रहा है। मध्य प्रदेश सरकार इसके लिए अपने राज्य के किसानों को प्रेरित कर रही है।
मध्य प्रदेश राज्य बाँस मिशन ने बाँस लगाने से लेकर उसके बड़े होने तक एक बाँस का पौधा खरीदने सहित 240 रुपये की लागत का अनुमान लगाया है। यदि किसान अपनी निजी भूमि पर बांस लगाते हैं, तो कुल लागत का 50 प्रतिशत यानी 120 रुपये प्रति पौधा किसानों को सब्सिडी के रूप में दिया जाएगा।
क्या है किसानों के लिए योजना
किसानों को बांस रोपण और स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रेरित करने के लिए (Baas ki kheti) सब्सिडी की एक योजना भी लाई है, ताकि अधिक से अधिक किसान कम लागत में इससे जुड़ सकें और अपनी आय बढ़ा सकें।
वन क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से मनरेगा योजना के तहत बांस का पौधारोपण किया गया है। योजना के तहत 19 स्थानों पर 325 हेक्टेयर भूमि पर 203125 बांस लगाए गए हैं। वृक्षारोपण और उसके संरक्षण पर होने वाला पूरा खर्च मनरेगा योजना के तहत वहन किया जाएगा।
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पांच साल बाद बांस की कटाई से होने वाली आय को उस क्षेत्र की (Baas ki kheti) ग्राम वन समिति और संबंधित स्वयं सहायता समूह के बीच 20:80 के अनुपात में साझा किया जाएगा।
साथ ही स्वयं सहायता समूह और देवास स्थित बांस फैक्ट्री आर्टिसन एग्रोटेक लिमिटेड के बीच बांस बेचने का अनुबंध किया गया है। जिले के वन संभाग क्षेत्र के सभी परिक्षेत्रों में केम्पा योजना में 22 स्थानों पर 595 हेक्टेयर भूमि पर 2.38 लाख बांस लगाए गए हैं।
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खेती करके इंटरक्रॉपिंग की जा सकती है
Baas ki kheti बांस रोपण राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। बांस के पौधे लगाने के बाद किसान को हर साल खाद, सिंचाई, जुताई और पानी के खर्च से राहत मिलती है। रोपण से 5 वर्ष तक किसान अंतर-फसल विधि से अपनी सामान्य खेती कर सकता है और बांस की कटाई तक किसान को उपज का कोई नुकसान नहीं होगा।
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बांस से क्या बनता है?
फर्नीचर, सजावटी सामान, निर्माण कार्य, कृषि क्षेत्र, कागज उद्योग आदि में बांस की मांग लगातार बढ़ने से किसानों को अधिक आय होगी। विशेषज्ञों के अनुसार बांस में फोटो श्वसन तेजी से होता है।
तब उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग किया जाता है। (Baas ki kheti) बांस में 5 गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता होती है। एक ही बांस के जंगल का एक हेक्टेयर एक साल में एक हजार टन अवशोषित करता है।
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