सोयाबीन की बुआई करने का सही समय और तरीका…

सोयाबीन के किसानों के लिए बुवाई से पहले महत्वपूर्ण सुझाव...

सोयाबीन को पीला सोना कहा जाता है। किसानों का मानना है कि सोयाबीन की खेती से निश्चित रूप से लाभ मिलता है। इसमें नुकसान की गुंजाइश कम होती है। विश्व में 60% अमेरिका में सोयाबीन पैदा होती है इसके अलावा भारत में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन होता है। सोयाबीन रिसर्च सेंटर इंदौर में है। सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाइसीन मैक्स है। 

इसमें अधिक प्रोटीन होता है शाकाहारी मनुष्यों के लिए मांस के समान प्रोटीन मिलता है। मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा होता है।  सोयाबीन में 38-40% प्रोटीन, 22% तेल, 21% कार्बोहाइड्रेट, 12% नमी तथा 5 % भस्म होती है।  सोयाबीन दलहन की फसल है, इसमें अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है। 

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सोयाबीन की बुआई करने का सही समय 

ख़रीफ़ की फ़सल की तैयारी शुरू कर दी है जुलाई माह में इसकी बुवाई के लिए खेत तैयार  है। इसमें सोयाबीन की फसल को अधिक मात्रा मप्र मे बोया जाता है।सोयाबीन को सबसे उपयुक्त माना गया है ये समय सोयाबीन को बोने के समय अच्छे अंकुरण के लिए भूमि में 8/10 सेमी भूमि में नमी की जरूरत है। खेत की तैयारी में यदि बुवाई में देरी हो जाती है तो 5/10 प्रतिशत बीज को बड़ा कर डाले। भारतवर्ष का 50 प्रतिशत से अधिक सोयाबीन का उत्पादन केवल म.प्र. में होता है जो कि देश में सबसे अधिक है।

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सोयाबीन की बुआई करने का सही तरीका  

खेत में सोयाबीन की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. होना चाहिए। कम ऊंचाई वाली जातियों या कम फैलने वाली जातियों को 30 से.मी. की कतार से कतार की दूरी पर बोना चाहिए जैसे 95-60, 20-34 आदि। पौधे से पौधे की दूरी 5-7 से. मी. रखना चाहिए। बुवाई का कार्य मेड़ – नाली विधि एवं चौड़ी पट्टी – नाली विधि से करने से सोयाबीन की पैदावार में वृद्धि पायी गयी है एवं नमी संरक्षण तथा जल निकास में भी यह विधियां अत्यंत प्रभावी पायी गयी है।

विपरीत परिस्थितियों में बुवाई दुफन, तिफन या सीड ड्रिल से कर सकते हैं। बुवाई के समय जमीन में उचित नमी आवश्यक है। बीज जमीन में 2.5 से 3 से. मी. गहराई पर पड़ने चाहिए।

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सोयाबीन के किसानों के लिए बुवाई से पहले महत्वपूर्ण सुझाव

  • सोयाबीन की बोवनी के लिए जून माह के दूसरे सप्ताह से जुलाई माह के प्रथम सप्ताह का समय सबसे उचित होता है, लेकिन सलाह है कि मानसून के आगमन के पश्चात ही, न्यूनतम 10 सेमी वर्षा होने की स्थिति  में सोयाबीन की बोवनी करें।
  • सोयाबीन के उत्पादन में स्थिरता की दृष्टि  से 2 से 3 वर्ष में एक बार अपने खेत की गहरी जुताई करना लाभकारी होता है। अतः ऐसे  किसान जिन्होंने इस पद्धति को नहीं अपनाया है, कृपया इस समय अपने खेत की गहरी जुताई करें।  उसके पश्चात विपरीत दिशा में कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें। सामान्य वर्षों में विपरीत दिशा में दो बार कल्टीवेटर एवं पाटा चलाकर खेत को तैयार करें।
  • अंतिम बखरनी से पूर्व गोबर की खाद (10 टन/हे) या मुर्गी की खाद (2.5 टन/हे) को खेत में फैलाकर अच्छी तरह मिला दें। .इससे  भूमि की गुणवत्ता एवं पोषक तत्वों में वृद्धि होगी।
  • उपलब्धता अनुसार अपने खेत में विपरीत दिशाओं में 10 मीटर के अंतराल पर सब- सोइलर नामक यंत्र को चलाएं जिससे भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि  होगी, एवं सूखे की अनपेक्षित स्थिति  में फसल को अधिक दिन तक बचाने में सहायता मिलेगी।
  • विगत कुछ वर्षों से फसल में सूखा, अतिवृष्टि  या असामयिक वर्षा जैसी घटनाएं देखी जा रही हैं। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में फसल को बचाने हेतु सलाह है कि सोयाबीन की बोवनी के लिए बी.बी.एफ (चौड़ी क्यारी प्रणाली) या रिज -फरो पद्धति (कुड-मेड- प्रणाली)का चयन करें तथा संबंधित यंत्र या उपकरणों का प्रबंध करें।
  • सलाह है कि अपने जलवायु क्षेत्र के लिए अनुशंसित, विभिन्न समयावधि में पकने वाली  2-3 सोयाबीन की  किस्मों  का चयन  करें तथा बीज की उपलब्धता एवं गुणवत्ता (बीज का अंकुरण न्यूनतम 70%)  सुनिश्चित करें।
  • सोयाबीन की खेती के लिए आवश्यक आदान (बीज, खाद-उवरक, फफूंद नाशक, कीटनाशक, खरपतवार नाशक , जैविक कल्चर) का क्रय एवं उपलब्धता सुनिश्चित करें।

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