बारिश में पशुओं की देखभाल कैसे करें?

बारिश में पशुओं के रख-रखाव के लिए पशु विशेषज्ञ ने बताई ये खास बातें, जानिए

भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन का बहुत बड़ा योगदान है। आमतौर पर सभी किसान कोई न कोई पशु पालते हैं। इसके अलावा भारत के करोड़ों अन्य आम लोगों की आजीविका पशुओं पर आधारित है। मुख्य पालतू पशुओं में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊँट, घोड़ा, घोड़ी आदि शामिल हैं। बारिश का मौसम शुरू हो चुका है, अगर आप पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं तो अपने पशुओं को मौसम के प्रभाव से बचाना बहुत जरूरी है।

गाय और भैंसें मानसून के दौरान बछड़ों को भी जन्म देती हैं। इसलिए यह और भी जरूरी हो जाता है कि स्वस्थ बछड़े को जन्म देने के साथ-साथ भैंस का स्वास्थ्य भी अच्छा रहे। बारिश में प्रसव बहुत जोखिम भरा होता है। जरा सी लापरवाही से पशु को कई तरह की संक्रामक बीमारियां हो सकती हैं।

बारिश में पशुओं की देखभाल कैसे करें

पशु कितना दूध देगा या नहीं देगा, यह सब उसके खान-पान पर निर्भर करता है। पशु को खाने में जितना बढ़िया हरा चारा, सूखा चारा और मिनरल मिक्सचर दिया जाएगा, पशु उतना ही ज्यादा और अच्छा फैट वाला दूध देगा, लेकिन इसके साथ ही मौसम के हिसाब से पशुओं का रख-रखाव भी उनके दूध उत्पादन को काफी हद तक प्रभावित करता है। अगर पशु किसी परेशानी की वजह से तनाव में है, तो समझ लीजिए कि उसका दूध उत्पादन कम होना तय है।

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इसलिए जरूरी है कि चाहे गर्मी हो या सर्दी या फिर मानसून, पशु विशेषज्ञों के मुताबिक पशुओं की देखभाल बहुत जरूरी है। ऐसा करने से उत्पादन तो बढ़ता ही है, साथ ही पशु को हर तरह की छोटी-बड़ी बीमारियों से भी बचाव होता है। जिससे पशुपालक को इलाज के अतिरिक्त खर्च से भी मुक्ति मिल जाती है और उसकी उत्पादन लागत भी नहीं बढ़ती।

मानसून में दुधारू पशुओं की देखभाल कैसे करें

  • बारिश में मजबूत शेड तैयार करें: अपने पालतू जानवरों को बारिश के मौसम से बचाने के लिए आपको टिन या किसी अन्य प्रकार की छत वाला शेड तैयार करना होगा। यह शेड इतना मजबूत होना चाहिए कि आंधी में गिर न जाए। इसमें पानी का रिसाव नहीं होना चाहिए। पशुओं के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए। अगर शेड पूरी तरह से साफ नहीं है तो कई तरह के केमिकल भी पशुओं पर असर कर सकते हैं। इससे पशुओं की आंखों पर तेजी से बुरा असर पड़ता है। पशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार खराब शेड की वजह से पशुओं में कोक्सीडियोसिस नामक बीमारी भी हो जाती है। इसमें पशुओं के खुर सड़ जाते हैं। इसके अलावा टपकती छत से पानी गिरने पर पशु बीमार हो सकते हैं।
  • बैक्टीरिया न फैलने दें: बारिश के मौसम में नमी की वजह से बैक्टीरिया तेजी से फैलते हैं। जहां पालतू जानवरों को रखा जाता है, वहां बारिश के मौसम में समय-समय पर डीवॉर्मिंग दवा का छिड़काव करना चाहिए। इससे पशुओं को बैक्टीरिया से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकेगा। पूरे बारिश के मौसम में डी-वार्मिंग जरूरी है।
  • चारे में फफूंद नहीं होनी चाहिए: पशुओं के लिए सूखा या हरा चारा बिल्कुल सही होना चाहिए। अगर पानी गिरने से उसमें फफूंद लग गई है तो इससे पशुओं को कैंसर भी हो सकता है। गीला और खराब चारा हटा दें।

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  • पशुशाला का फर्श साफ रखें: पशुशाला के अंदर अगर फर्श सीमेंटेड है तो उसे पूरी तरह साफ रखें। कई बार फर्श पर कंकड़, चूना या अन्य चीजें होने से वह पशु के पैरों के खुरों के बीच फंस जाती हैं। इससे भी पशुओं को काफी परेशानी होती है।
  • बरसात के मौसम में हरी घास कम खिलाएं: पालतू जानवरों को बरसात के मौसम में उगने वाली घास कम खिलाएं। अगर पशु इस घास को अधिक मात्रा में खा लेते हैं तो इससे पशुओं का पाचन खराब होता है। इसके लिए घास के साथ सूखा चारा भी दें ताकि पशुओं को पेट संबंधी बीमारियां न हों।
  • जानलेवा है ईस्ट कोस्ट बुखार: ईस्ट कोस्ट नामक बुखार पशुओं में जानलेवा होता है। इससे पशुओं की मौत भी हो जाती है। इससे बचने के लिए बरसात के मौसम में पशुओं के आसपास मक्खियों को न पनपने दें। ईस्ट कोस्ट नामक बुखार भी मक्खी की एक प्रजाति से फैलता है।
  • पेट की बीमारियों से बचाएं: बारिश के मौसम में पशुओं में पेट की बीमारियां ज्यादा फैलती हैं। इसके अलावा दुधारू पशुओं के थन भी रोगग्रस्त हो जाते हैं। उनमें फाइब्रोसिस हो जाता है। पशुओं को खुला छोड़ने से कई बार वे बरसाती घास के साथ कीड़े आदि भी खा लेते हैं। इससे पेट की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। पेट संबंधी बीमारियों से बचाने के लिए बरसात के मौसम में कम पानी वाली घास खिलाएं। साथ ही समय-समय पर अपने पशु की पशु चिकित्सक से जांच कराते रहें।

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