Gram Farming: किसानों के लिए एक आकर्षक अवसर- चने की खेती, बुआई, सिंचाई और उन्नत किस्मों के बारे में जानें
चना, जिसे अक्सर भारत की मुख्य फसल कहा जाता है, पूरे देश में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। चना एक दलहनी फसल है, जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। पूरी दुनिया का 75% चना भारत में ही उगाया जाता है, चना मानव शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है चने के पौधे का हर भाग उपयोग में लाया जाता है
चने की खेती (Gram Farming) से किसान अच्छी खासी आय अर्जित करने की क्षमता रखते हैं। चने की खेती का समय सितंबर से अक्टूबर के बीच आता है। सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी की स्थिति और चने की सर्वोत्तम किस्मों की चयन करें।
चना, जिसे अक्सर भारत की मुख्य फसल कहा जाता है, पूरे देश में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। चना एक दलहनी फसल है, जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। पूरी दुनिया का 75% चना भारत में ही उगाया जाता है। चना मानव शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है चने के पौधे का हर भाग उपयोग में लाया जाता है, उसके बीज (दालें) से लेकर उसकी पत्तियाँ और पौधा तक। चने का उपयोग विभिन्न पाक व्यंजनों में भी किया जाता है, जबकि बची हुई वनस्पति सामग्री जानवरों के लिए चारे के रूप में काम करती है। चने की लगातार बाजार मांग इसे एक मूल्यवान फसल बनाती है, और जब प्रभावी ढंग से खेती की जाती है, तो यह उच्च उत्पादन और लाभ दोनों दे सकता है।
सिंचाई रहित क्षेत्रों में, चने की बुआई आमतौर पर अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है, जो कि खरीफ सीजन में लाभदायक अवसर है। भारत में प्राथमिक चना उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र शामिल हैं। देश में इसकी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा बिहार आदि राज्यों में की जाती है। देश के कुल चना क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत भाग तथा कुल उत्पादन का लगभग 92 प्रतिशत इन्हीं राज्यों से प्राप्त किया जाता है। देश में चने की खेती 7.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है, जिससे 7.62 क्विं./हे. के औसत मान से 5.75 मिलियन टन उपज प्राप्त होती है। भारत में सबसे अधिक चने का क्षेत्रफल एवं उत्पादन वाला राज्य मध्यप्रदेश है तथा छत्तीसगढ़ प्रांत के मैदानी जिलो में चने की खेती असिंचित अवस्था में की जाती है।
मिट्टी की आवश्यकताएँ
चना हल्की से लेकर भारी मिट्टी तक में पनपता है, बशर्ते पर्याप्त जल निकासी हो। 5.5 से 7 तक की मिट्टी का पीएच पौधों की मजबूत वृद्धि के लिए आदर्श माना जाता है।
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चने की प्रमुख उन्नत किस्में
- चने की उन्नत किस्म जे० जी०-16
चने की इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनों तरह की भूमि में आसानी से उगाया जा सकता हैं। इस किस्म के पौधे रोपाई एक लगभग 130 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाती हैं। इस किस्म की औसतन पैदावार 20 कुंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके पौधे ऊंचाई सामान्य होती है, तथा पौधों पर उख्टा रोग का प्रभाव कम होता है। - चने की उन्नत किस्म पूसा – 256
चना की यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर पछेती रोपाई के लिए उपयुक्त होती है। इस किस्म के ज्यादतर पौधे लम्बे और सीधे होते हैं, जो बीज रोपाई के लगभग 130 दिन के आस-पास पककर तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की औसतन उपज लगभग 27 कुंटल प्रति हेक्टेयर है तथा इस किस्म के पौधों में अंगमारी की बीमारी कम होती है। - चने की उन्नत किस्म वरदान
इस किस्म को भी सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर आसानी से बुवाई की जा सकती है। इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं। इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 150 दिन बाद उपज तैयार हो जाती हैं। इस किस्म पौधे पर गुलाबी बैंगनी रंग के फूल होते हैं, जबकि इसके दानो का रंग गुलाबी भूरा होता है। इस किस्म के चने का उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक है। यह किस्म झुलसा का रोगरोधी होती है। - चने की उन्नत किस्म जाकी 9218
चने की यह किस्म एक मध्यम समय में उपज देने वाली किस्म है, यह किस्म के लगभग 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती हैं। चने की इस किस्म की खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है। इसके पौधों का फैलाव कम होता है। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 क्विंटल के लगभग हो जाता हैं। इस किस्म को मध्य प्रदेश राज्य में अधिक उगाया जाता है। - चने की उन्नत किस्म जी० एन० जी० -146
चने की यह किस्म मध्यम समय में उपज देने के लिए जाती हैं, इस किस्म के पौधों की ऊंचाई सामान्य होती है। इस किस्म के पौधे पर गुलाबी रंग के फूल होते है। इस किस्म का पौधा रोपाई के लगभग 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके पौधों पर झुलसा रोग का प्रभाव नही होता। इस किस्म के दानो का आकार काफी बड़ा होता है। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है।
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जमीन की तैयारी
चने की खेती के लिए पूरी तरह से समतल क्यारियों की आवश्यकता नहीं होती है। मिश्रित फसल के रूप में उगाने पर खेत की अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। खरीफ फसल की खेती के लिए, मानसून की शुरुआत के दौरान गहरी जुताई करने से वर्षा जल का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने में मदद मिलती है।
खेती का समय
सिंचित चने की बुआई 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच करनी चाहिए, सबसे अनुकूल समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच है। आमतौर पर, प्रति हेक्टेयर 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, लेकिन जी.एन. जैसी विशिष्ट किस्मों के लिए। हाँ। 469 (सम्राट), 75 से 85 किलोग्राम बीज की अनुशंसा की जाती है। इसके अतिरिक्त चने की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
चने की खेती के लिए बीज आवश्यकताएँ
चने के बीज का चुनाव और मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे चने की किस्म, बुआई का समय और मिट्टी की उर्वरता। यहां विभिन्न परिदृश्यों के लिए प्रति एकड़ अनुशंसित बीज की मात्रा दी गई है:
- चने की स्वदेशी किस्म: देशी चने की किस्मों का उपयोग करते समय प्रति एकड़ 15-18 किलोग्राम बीज बोएं।
- चने की काबुली किस्म: यदि आप चने की काबुली किस्म चुनते हैं, तो प्रति एकड़ 37 किलोग्राम बीज बोने की सलाह दी जाती है।
- धान की फसल की कटाई के बाद बुआई: धान की फसल की कटाई के बाद चने की बुआई करते समय प्रति एकड़ 27 किलोग्राम बीज डालें।
- अगेती बुआई (दिसंबर से पहले): दिसंबर से पहले चने के बीज बोने के लिए प्रति एकड़ 36 किलोग्राम बीज बोने की सलाह दी जाती है।
ये बीज मात्रा दिशानिर्देश चने की सफल खेती सुनिश्चित करने में मदद करने के लिए चने के प्रकार, बुआई का समय और विशिष्ट कृषि स्थितियों जैसे कारकों को ध्यान में रखते हैं।
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सिंचाई के लिए उपयुक्त समय
पौधों को कीटों से बचाने के लिए चने की खेती के दौरान समय-समय पर सिंचाई अवश्य करें। पहली सिंचाई के 55 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करें और तीसरी सिंचाई 100 दिनों में करनी चाहिए।
चने की बुआई
- चने की बुआई करने से पहले आपको चने की उन्नत किस्मों के बारे में पता होना चाहिए, आप जिस मौसम में चने की बुवाई कर रहे हो उस मौसम में कौन सी किस्म सही रहेगी इसके बारे में आपको प्रयाप्त जानकारी होनी चाहिए, हमने इसके बारे में ऊपर बताया है।
- बुवाई से पूर्व बीजों के अंकुरण क्षमता की जांच अवश्य करें।
- बुवाई से पूर्व खेत पूर्व फसलों के पौधों से मुक्त होना चाहिए, जिससे फसल में अनावश्यक पौधे नहीं उगेंगे और फसल अच्छे से चलेगी।
चने की सिंचाई
- चने की खेती नमी वाले इलाकों में की जाती है, चने की अधिकतर खेती बारानी क्षेत्रों में की जाती है, क्योंकि यह क्षेत्र नामी वाले होते हैं और यदि किसी क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है तो वहां भी चने की खेती की जा सकती है।
- सिंचाई वाले क्षेत्रों में नमी नहीं होने से चने की फसल में एक या दो सिंचाई करना आवश्यक है।
- चने की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 40 से 50 दिनों के बाद की जाती है तथा दूसरी सिंचाई फसल में फलिया आने के बाद की जाती है। सिंचित वाले क्षेत्रों में चने की फसल में 3 से 4 सिंचाई काफी होती है।
- फसल की गुड़ाई करने के पश्चात भी फसल में सिंचाई की जाती है तथा फसल की अंतिम सिंचाई 100 से 110 दिनों के बाद की जाती है।
- यदि आपकी फसल ऐसे इलाकों में है जहां पर सिंचाई की सुविधा कम उपलब्ध है, तो आपको बुवाई के 60 से 65 दिनों के बाद सिंचाई करनी चाहिए
- फसल में ज्यादा समय तक पानी भरा रहना सही नहीं है, इससे फसल के तने सड़ सकते हैं एवं फसल गल सकती है।
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चने की कटाई
चने की कटाई तब करनी चाहिए जब पौधा सूख जाता है और पत्ते लाल-भूरे दिखते हैं और झड़ने शुरू हो जाते हैं, उस समय पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है। कटाई करने के बाद फसल को 5-6 दिनों के लिए धूप में सुखाएं, ताकि चने के अंदर से नमी खत्म हो सके कटाई के बाद, चने की देखभाल करें, जैसे कि उन्हें सुखाने और भंडारित करने के लिए सुरक्षित और सुरक्षित स्थान पर रखना।
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