गेहूं में पीला रतुआ रोग: गेहूं की फसल को पीले रतुआ रोग से बचाने के आसान उपाय

पीला रतुआ की पहचान कैसे करें?

गेहूं में पीला रतुआ रोग: देश में अधिकांश स्थानों पर गेहूं की बुआई का काम पूरा हो गया है, अब किसानों को गेहूं की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उसमें लगने वाले कीट-रोगों से बचाने की आवश्यकता है। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान, करनाल के द्वारा जारी सलाह के मुताबिक यह मौसम गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग के विकास और इसके प्रसार के लिए अनुकूल है। ऐसे में किसानों को पीला रतुआ रोग के प्रकोप को देखने के लिए नियमित रूप से अपनी फसल का दौरा करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी पत्तियों का पीलापन रोग के अलावा अन्य कारकों के कारण भी हो सकता है। यदि किसान अपने गेहूं के खेतों में पीले रतुआ को देखते हैं, तो निम्नलिखित उपाय को अपनायें।

पीला रतुआ की पहचान कैसे करें?

पीला रेतुआ रोग के लक्षणों में पीले रंग की धारियां पतियां पर दिखाई देती है, इसकी पहचाने के लिए पत्ते को तोड़ कर हाथ पर मसलना चाहिए। अगर हल्दी जैसा रंग पीला चूरन निकलता है तो यह पीला रेतुआ है। पौधे के नीचे देखें की वहां भी पीला पाऊटर जमीन पर गिरा दिखाई दे तो यह पीला रेतुआ है।

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पीला रतुआ रोग लगने पर करें इन दवाओं का छिड़काव

  • कात्यायनी बूस्ट प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC: यह दवा फफूंदी की वृद्धि को रोकती है और गेहूं को सुरक्षा प्रदान करती है, एक बार छिड़काव करने के बाद, यह दवा पौधों को 10 से 15 दिनों तक रोग से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • टेबुकोनाज़ोल:यह रस्ट एज़ोल का एक दवा है, जिसका इस्तेमाल पीले रतुआ रोग को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  • प्रोलाइन275 या एविएटर235Xpro: इसका इस्तेमाल पीले रतुआ रोग को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  • एविएटर235Xpro या एस्क्रैक्सप्रो: इसका इस्तेमाल पीले रतुआ रोग को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  • बीजों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें।
  • उचित रोपण घनत्व, उचित सिंचाई, और समय पर खरपतवार नियंत्रण जैसी अच्छी कृषि पद्धतियों का पालन करें।
  • नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग न करें।

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किसान फसल में कीट नियंत्रण के लिए किसी भी दवा का इस्तेमाल करने से पहले अपने निकटतम कृषि विभाग से सलाह अवश्य लें और इसके बाद ही किसी रासायनिक दवा का उपयोग करें।


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