चने की खेती करने वाले किसान तगड़े मुनाफे के लिए जनवरी महीने में करें ये काम

चने की खेती करने वाले किसानों के लिए, जनवरी का महीना रबी फसल की अच्छी पैदावार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

चने की खेती करने वाले किसानों के लिए, जनवरी का महीना रबी फसल की अच्छी पैदावार के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। जनवरी में ठण्ड के दौरान तापमान में गिरावट से पाला, कोहरा और ओलावृष्टि जैसी समस्या सामने आती हैं, साथ ही मौसम की बदलती परिस्थितियों के कारण कीटों और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है,  ऐसे में किसानों को खेत में लगी फसलों का लगातार निरीक्षण करने के साथ ही समय पर खाद एवं पानी देना चाहिये।

रबी सीज़न के दौरान दलहनी फसल चना, देश भर के विभिन्न राज्यों में किसानों की आय को प्रभावित करती है। चने की खेती से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों को जनवरी माह के दौरान विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए।

चने की फसल में पानी देने का समय 

चने की खेती में सिंचाई की अहम भूमिका होती है। शुरुआती पानी, बुआई के 45-60 दिन बाद (फूल आने से पहले) आवश्यक है, उसके बाद फली के दाने बनने के दौरान दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। शीतकालीन वर्षा की उपस्थिति में, दूसरी सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। हालाँकि, संभावित नुकसान को रोकने के लिए फूल आने के दौरान सिंचाई से बचना चाहिए। सिंचाई के लगभग एक सप्ताह बाद हल्की गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है। असिंचित या देर से बोई जाने वाली फसलों के लिए फूल आने के समय 2% यूरिया के घोल का छिड़काव करना लाभकारी सिद्ध होता है।

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चने की फसल में दूसरी सिंचाई, बुआई के लगभग 70 से 80 दिन बाद, फली बनते समय महत्वपूर्ण होती है। यदि ठंड में वर्षा हो जाये तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अनावश्यक सिंचाई से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि रुक जाती है। इससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चने की फसल की भरपूर पैदावार के लिए जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, अन्यथा फसल के मरने की संभावना रहती है।

यूरिया घोल का छिड़काव

चने की फसलों में 2% यूरिया घोल का छिड़काव करना लाभकारी होता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे पहले छिड़काव के 10 दिन बाद से शुरू करके 10 दिनों के अंतराल पर शाम को दो बार पर्णीय छिड़काव करें। यह देखा गया है कि इस अभ्यास से पैदावार में 15-20% की वृद्धि होती है।

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फली छेदक कीट के हमले की रोकथाम

यह एक हरे रंग की लटें होती हैं, जो 1.25 इंच लंबी होती है, जो बाद में भूरे रंग की हो जाती है। शुरुआत में चने की पत्तियों को खाती हैं। इसके बाद फली लगने पर उनमें छेद कर दाने को खोखला कर देती हैं। इससे दाना नहीं बन पाता और फसल खराब होने लगती है।

फली छेदक रोकथाम के उपाय

  • जैविक नियंत्रण हेतु जनवरी-फरवरी माह से 5-6 फेरोमेन ट्रेप प्रति हैक्टेयर में लगावें। एक या अधिक फलीछेदक की तितलियां (दो से तीन दिन लगातार) आने पर 5-8 दिन के बीच पहला छिडक़ाव करें।
  • चने में फली छेदक कीड़े के नियंत्रण हेतु लगभग 50 प्रतिशत फूल आने पर एनपीवी 250 एलई एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
  • दूसरा छिडक़ाव 15 दिन बाद बीटी 750 मिली लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से करें।
  • तीसरा छिडक़ाव आवश्यक हो तो एनपीवी का उपयोग करें।

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  • जैविक नियंत्रण हेतु करीब 50 प्रतिशत फूल आने पर एजेडिरेक्टिन (नीम का तेल) 700 मिलीलीटर प्रति हैक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
  • रासायनिक नियंत्रण हेतु फूल आने से पहले तथा फली लगने के बाद मैलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण का 20-20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें। कीट प्रकोप दिखाई देते ही एसीफेट 75 एस.पी. 500 ग्राम दवा का आवश्यकतानुसार पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करे या इंडोक्सीकार्ब 14.5 एस.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या ईमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस.जी. 0.5 ग्राम प्रति लीटर में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।

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