गाजर के बीज का उत्पादन एक फायदेमंद काम

खास बातों का ध्यान, मिलेगा बढ़िया उत्पादन अगर आप भी गाजर का बीज उत्पादन करते हैं

गाजर एक महत्वपूर्ण कंद फसल होती है, जिसकी खेती से किसान कुछ ही महीनों में बढ़िया उत्पादन पा सकते हैं। लेकिन कई बार किसानों के अच्छे बीज की समस्या आती है, ऐसे में किसान खुद ही बीज उत्पादन करके अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।

सब्जी की पैदावार बढ़ाने में अच्छे बीजों की जरूरत पड़ती है। अच्छे किस्म के बीज ज्यादातर किसानों को मिल नहीं पाते हैं। इस की खास वजह है बीजों का महंगा होना। गाजर के बीज का उत्पादन एक फायदेमंद काम है।

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बीज की पैदावार में इन बातों का रखे ध्यान

  • खेत का चुनाव-गाजर के बीज के उत्पादन के लिए जो खेत चुना जाए, उस में अपने आप उगे हुए पौधे नहीं होने चाहिए।
  • दुरी- मधुमक्खियों व अनेक कीटों के द्वारा गाजर में परपरागण होता है, इसलिए बीज की फसल की दूसरी अलग किस्मों से आधार बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर व प्रमाणित बीज के लिए 800 मीटर दूरी रखनी चाहिए।
  • जलवायु- बीज फसल के लिए गाजर 2 साल वाली फसल है। पहले मौसम में खाने के लिए इस्तेमाल करने लायक गाजर जड़ का विकास होता है और दूसरे मौसम में बीज वृंत निकलते हैं, जो फसल की किस्म के मुताबिक 0.5 से 1.5 मीटर की ऊंचाई तक जाते हैं। बीज उत्पादन के लिए 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सही रहता है। पहाडि़यों या ऊंचे स्थानों पर बीजोत्पादन आसानी से किया जा सकता है।

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  • प्रजाति का चयन- अच्छे उत्पादन के लिए सही प्रजातियों को चुनें। पूसा केसर, कल्याणपुर पीली, अर्लीनेट्स, पूसा यमदागिली व हरियाणा सलेक्शन वगैरह गाजर की उम्दा प्रजातियां हैं।
  • जमीन- अच्छे जलनिकास वाली हलकी दोमट जमीन सही रहती है।

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बीज उत्पादन की विधियां

गाजर बीज उत्पादन की 2 खास विधियां हैं जड़ (गाजर) से बीजोत्पादन और बीज से बीज उत्पादन। जड़ से बीज उत्पादन विधि ज्यादा अच्छी मानी जाती है।

जड़ से बीज उत्पादन विधि- 75-90 सेंटीमीटर दूरी पर मेंड़ों के ऊपर बीजों की बोआई की जाती है। बीज आने तक मेंड़ों पर नमी होना जरूरी है। जब पौधों की ऊंचाई 5-6 सेंटीमीटर हो जाती है, तब फालतू पौधों की संख्या कम कर के दूरी 6-7 सेंटीमीटर कर दी जाती है। जड़ें तैयार हो जाने के बाद उन्हें उखाड़ कर 30 डिग्री फारेनहाइट के भंडारगृहों में भंडारित कर लिया जाता है, जड़ों को छांट कर केवल अच्छी प्रजाति की जड़ों को ही बीज उत्पादन के लिए चुनना चाहिए।

  • बोआई का समय- प्रजाति व जलवायु की दशा के मुताबिक जुलाई व अगस्त में बोआई की जाती है।
  • बीज दर- 3-4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में उत्पादित जड़ों से 3-4 हेक्टेयर रकबे में रोपाई हो जाती है।
  • रोपाई विधि- तैयार जड़ों की 75×25-3 सेंटीमीटर दूरी पर फरवरी में रोपाई कर दी जाती है। इस के बाद जड़ों के चारों ओर मिट्टी चढ़ा कर तुरंत सिंचाई कर दी जाती है।
  • खाद व उर्वरक- गाजर जड़ उत्पादन के दौरान 15-20 टन गोबर की खाद बोआई से पहले डालें। 40-50 किलोग्राम फास्फोरस व पोटाश को बोआई के समय डालें और 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव निराई के बाद करें।
  • बीज उत्पादन के दौरान 20 टन गोबर की खाद डालें- 40-50 किलोग्राम फास्फोरस, 60-80 किलोग्राम पोटाश बोआई से पहले डालें और 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन का गुड़ाई के बाद अप्रैलमई में इस्तेमाल करें।
  • सिंचाई- जरूरत के हिसाब से 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। खाद देने के बाद व सिंचाई से पहले पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

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  • फसल सुरक्षा- समयसमय पर निराई व गुड़ाई करते रहना चाहिए। फसल की शुरुआती अवस्था में खास ध्यान देना चाहिए। गाजर में रोगों और कीटों की कोई खास समस्या नहीं होती है। फसल में लगने वाले कीटों को रोगोर 30 ईसी 0.05 फीसदी का घोल छिड़क कर रोका जा सकता है।
  • फालतू पौधों को निकालना- गाजर की जड़ों को दोबारा लगाने से पहले छोटी गाजर वाले पौधों, रोगग्रस्त पौधों व खरपतवार के पौधों को निकाल देना चाहिए। इस के बाद फूल आने के समय फूल के रंग और आकारप्रकार से अलग पौधों को भी निकाल देना चाहिए।
  • बीज फसल की कटाई व सुखाई- आमतौर पर गाजर की बीज फसल सितंबर तक पक कर तैयार हो जाती है। इस के सभी सिरे एकसाथ नहीं पकते हैं, इसलिए इसे 2-3 बार में तोड़ना ठीक रहता है। सिरों को अच्छी तरह से सुखाने के बाद बीज निकाल लिए जाते हैं। बीज फसल से 500-600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज हासिल होते हैं।
  • बीज फसल की छनाई व ग्रेडिंग- बीजों को छान कर साफ कर लिया जाता है। छनाई के लिए ऊपरी छन्ना 2.30 मिलीमीटर और निचला छन्ना 1 मिलीमीटर का रखा जाता है। छने बीजों से 30 ग्राम नमूना बीज परीक्षण के लिए भेजे जाते हैं, यदि बीज मानक के मुताबिक होते हैं, तो उन्हें प्रमाणित किया जाता है।

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