गायों में होने वाली 9 प्रमुख बीमारियां और उनके लक्षण – जानिए पूरी जानकारी

गाय का दूध ही नहीं घी भी अमृत की तरह से माना जाता है, इसलिए जरूरी है कि गायों को कई तरह की बीमारियों से बचाकर रखा जाए.

गायों में होने वाली 9 प्रमुख बीमारियां: गिर, राठी, नागौरी, साहीवाल और बद्री गायों को गायों की सबसे अच्छी नस्ल माना जाता है। ये सभी देशी नस्लें हैं। यही वजह है कि गाय का दूध ही नहीं बल्कि घी भी अमृत माना जाता है। इसलिए गायों को कई तरह की बीमारियों से बचाना जरूरी है। इसके लिए समय रहते बीमारियों की पहचान करना जरूरी है।

भारत में गायों का महत्व और स्वास्थ्य संरक्षण

देश में गायों की संख्या दूध देने वाले पशुओं खासकर भैंसों से ज्यादा है। भारत में गायों को सिर्फ दूध के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य कारणों से भी काफी महत्व दिया जाता है। आज देश में गायों की 53 नस्लें हैं। नस्ल सुधार कार्यक्रमों के लिए कुछ खास नस्लों को दूसरे देशों को दिया गया है। हर राज्य में कुछ ऐसी नस्लें हैं जिनका अभी तक पंजीकरण नहीं हुआ है। दूध उत्पादन में भारत नंबर वन है, जिसमें से 50 फीसदी हिस्सा गायों का है। इसमें विदेशी नस्ल की गायों को शामिल नहीं किया जाता। इसलिए यह जरूरी हो जाता है।

गायों को हर तरह की बीमारियों से बचाना चाहिए। हालांकि यूपी के मेरठ में एक मवेशी अनुसंधान केंद्र है। इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि गाय की रोजाना निगरानी करके हम उसे कई बीमारियों से बचा सकते हैं। साथ ही कृत्रिम गर्भाधान तकनीक का इस्तेमाल करके गायों को बीमारियों से बचाया जा सकता है।

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गायों के 9 तरह के रोग और उनके लक्षण

डिप्थीरिया

सांस लेने में दिक्कत, गले में सूजन। एंटीबायोटिक और इंजेक्शन से इलाज होता है। साथ ही बारिश के मौसम से पहले टीकाकरण करवा लेना चाहिए।

थनैला

थनों में दिक्कत, दूध में दाने, थनों में सूजन इस बीमारी के लक्षण हैं। अलग-अलग दवाएं दी जाती हैं। समय-समय पर पशु के दूध और थन की जांच करवाते रहें।

लंगड़ा बुखार

106-107 डिग्री तक बुखार। पशु के पैरों में सूजन, पशु का लंगड़ाना भी इसके लक्षण हैं। बारिश के मौसम से पहले टीकाकरण करवा लेना चाहिए और बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए।

मिल्क फीवर

शरीर के तापमान में गिरावट, सांस लेने में दिक्कत। प्रसव के 15 दिन तक पशु का दूध पूरी तरह से न निकालें तथा पशु को आवश्यकतानुसार कैल्शियम युक्त आहार व पूरक आहार दें।

खुरपका व मुंहपका रोग

मुंह व खुरों में दाने निकल आते हैं, दाने फूटकर छाले बन जाते हैं तथा घाव गहरा हो जाता है। पशु को तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। बारिश से पहले टीकाकरण करा लेना चाहिए। बारिश के दौरान पशु को खुले में चरने नहीं देना चाहिए।

तिल्ली (एंथ्रेक्स)

मूत्र व गोबर में खून आना, तेज बुखार होना। पशु चिकित्सक से संपर्क कर स्थिति के अनुसार उपचार कराएं। इस रोग से बचाव के लिए समय रहते टीकाकरण करा लेना चाहिए।

क्षय रोग (टी.बी.)

पशु सुस्त हो जाता है, सूखी खांसी होती है तथा नाक से खून आता है। रोग के लक्षण दिखाई देने पर पशु को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। पशु के खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

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संक्रामक गर्भपात

पांच से छह माह में योनि से तरल पदार्थ टपकता है, प्रसव के लक्षण दिखाई देते हैं, लेकिन गर्भपात हो जाता है। पशु को अच्छी तरह से साफ किया जाना चाहिए, कृमि मुक्त किया जाना चाहिए और पशु चिकित्सक से परामर्श किया जाना चाहिए। छह से आठ महीने की उम्र के पशुओं को ब्रुसेला के खिलाफ टीका लगाया जाना चाहिए।

पेट फूलना
पशु के पेट का बायाँ हिस्सा सूज जाता है और पेट पर थपथपाने पर ढोल जैसी आवाज़ सुनाई देती है।


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