धान की खेती करने वाले किसानों को और बासमती चावल के निर्यातकों को सरकार ने दी बड़ी राहत

धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी, सरकार ने गैर-बासमती धान के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर प्रति टन करने का फैसला किया है।

धान की खेती: सरकार ने गैर-बासमती धान के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP) को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया है। इस कदम का उद्देश्य बाजार में धान की कीमतों को बढ़ावा देना है। मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में एक बैठक के दौरान इस निर्णय की घोषणा की और आश्वासन दिया कि एक औपचारिक अधिसूचना का पालन किया जाएगा।

यह बदलाव बासमती चावल के घटते निर्यात की प्रतिक्रिया के रूप में आया है, जो MEP कीमतों में वृद्धि के कारण हुआ था। मांग में गिरावट के कारण धान की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई, भारत से निर्यात होने वाले चावल में कमी आने लगी थी जिसके चलते पडोसी देश पाकिस्तान का मार्किट में कब्जा बढ़ने लगा था, क्योकि उनके चावल का रेट हमारे चावल से कम है।

MEP में कटौती से धान किसानों को काफी फायदा होने की उम्मीद

MEP में कटौती से धान किसानों को काफी फायदा होने की उम्मीद है। निर्यातकों द्वारा धान की खरीद में तेजी लाने की संभावना है, जिससे मांग बढ़ेगी और धान की कीमतें ऊंची होंगी। वर्तमान में, बासमती चावल का मूल्य लगभग 3000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पिछले वर्ष 3800 रुपये था, जब MEP दरें अधिक थीं।

धान की खरीदी में वृद्धि

इस सकारात्मक विकास के कारण पहले से ही धान की खरीदी में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से धान बासमती 1509, धान 1121, और धान 1718 जैसी किस्मों के लिए। विशेष रूप से धान 1121 की कीमतें लगभग 4655 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गई हैं, जिससे यह पसंदीदा बन गया है। इसकी मांग सबसे अधिक होने की संभावना है क्योकि इनका MEP मूल्य लगभग निर्यात मूल्य के करीब है।

इन राज्यों में धान का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है

हरियाणा और पंजाब दो ऐसे राज्य हैं जहां धान का सबसे अधिक उत्पादन होता है। वैसे तो देश में 7 राज्य ऐसे हैं जहां बासमती को GI टैग मिला हुआ है, लेकिन हरियाणा और पंजाब दो ऐसे प्रमुख राज्य हैं जहां बासमती का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। MEP मूल्य में वृद्धि के कारण बासमती धान की दरें कम होने लगीं और किसानों को भारी नुकसान होने लगा, जिसके कारण किसान संगठन और निर्यातक वर्ग नाराज थे और सरकार से भी नाराज थे, इसलिए ऐसे में सरकार ने उनको MEP में राहत दी है।

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