एक बार लगाएं 50 साल तक कमाएं/ जेट्रोफा की खेती के लाभ

जानें, कैसे होती है डीजल के पौधे की खेती (Jatropha Cultivation) और इससे कितना हो सकता है लाभ

किसान करें डीजल (Jatropha) के पौधे की खेती, हो जाएंगे मालामाल यह जानकर आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि डीजल का भी कोई पौधा होता है भला, पर यह सच है। जेट्रोफा (Jatropha) एक ऐसा ही पौधा है जिसके बीजों से बायोडीजल बनाया जा सकता है। इसकी इसी खासियत के कारण इसे डीजल के पौधे के नाम से भी जाना जाता है।

यदि किसान जेट्रोफा (Jatropha Cultivation) खेती करें तो इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। आज डीजल के भाव आसमान छू रहे हैं, ऐसे में जेट्रोफा की खेती किसानों की किस्मत खोल सकती है। दरअसल जेट्रोफा के पौधे से प्राप्त बीजों से बायोडीजल निकाला जाता है और इसकी कीमत भी बाजार में अच्छी मिलती है। ऐसे में किसानों के लिए जेट्रोफा की खेती (Jatropha Cultivation) लाभ का सौदा साबित हो सकती है।

क्या है जेट्रोफा (Jatropha)

जेट्रोफा (Jatropha) एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जो अर्धशुष्क क्षेत्रों में उगता है। इस पौधे से प्राप्त बीजों में 25 से 30% तक तेल निकाला जा सकता है। इस तेल के उपयोग से डीजल वाहन जैसे कार आदि वाहन चलाये जा सकते हैं। वहीं इसके बचे हुए अवशेष से बिजली पैदा की जा सकती है। यह सदाबहार झाड़ी है। इसकी खेती शुष्क व अर्धशुल्क क्षेत्रों में की जा सकती है, क्योंकि इसमें कठिन परिस्थितयों को सहने की क्षमता होती है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान के कुछ इलाकों में होती है।

जेट्रोफा के पौधे की विशेषताएं

इसके बीजों में तेल की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसके बीजों में करीब 37 प्रतिशत तक तेल निकाला जा सकता है। इससे प्राप्त तेल का ज्वलन ताप (फ्लैश प्वाइंट) अधिक होने के कारण सबसे ज्यादा सुरक्षित है। खास बात ये है कि इससे प्राप्त तेल को बिना रिफाइंड किये हुए भी ईंधन के रूप में प्रयोग में लिया जा सकता है। इसके तेल को जलाने पर यह धुआं रहित स्वच्छ लौ देता है।

कैसे की जाती है जेट्रोफा की खेती

जेट्रोफा की खेती (Jatropha Cultivation) बंजर व उसर भूमि में भी की जा सकती है। इसके अलावा इसकी खेती 200 मिमी. बारिश वाले क्षेत्रों में की जाती है। ऐसे क्षेत्रों के अलावा अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में भी इसकी खेती की जा सकती है। इस तरह जेट्रोफा की खेती दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है।

क्योंकि इसका पौधा कठिन परिस्थितियों में भी अपने को जीवित रखने की क्षमता रखता है। जेट्रोफा के पौधे को सीधे खेत में नहीं लगाया जाता है। सबसे पहले इसके बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार किए जाते हैं, उसके बाद इसे खेत में लगाया जाता है। करीब दो साल में इसके (Jatropha) पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। इसे सड़कों, नहरों या रेलवे लाइन के किनारे भी लगाया जा सकता है। किसान चाहे तो खेत के चारों ओर बाड़ के रूप में भी इस पौधे को लगा सकते हैं।

Jatropha के बीजों से कैसे प्राप्त होता है डीजल

जेट्रोफा के बीजों से डीजल बनने की प्रक्रिया काफी सरल है। इसमें सबसे पहले इसके पौधों के बीजों को फलों से अलग किया जाता है। इसके बाद इसके बीजों को अच्छी तरह से साफ किया जाता है। इसके बाद इन बीजों को एक मशीन में डाला जाता है जिसमें इसके बीजों से तेल निकाला जाता है।

जेट्रोफा (Jatropha) के बीजों से तेल निकालने की प्रक्रिया ठीक वैसी ही होती है जिस प्रकार से सरसों के तेल को निकालने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसके बीजों से तेल निकालने के बाद जो खली बचती है, उसे जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा इसे जानवरों को भी खिलाया जा सकता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।

50 साल तक देता है फल जेट्रोफा का पौधा

जेट्रोफा (Jatropha) के पौधे को एक बार लगाने के बाद यह 50 साल तक फल देता है। इसे बार-बार लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। वहीं इसे देखभाल की बहुत कम आवश्यकता होती है। खास बात ये हैं कि इसे जानवर भी नहीं खाते हैं। इसकी फसल को जानवरों से होने वाले नुकसान का भी डर नहीं है। इसके अलावा इसमें कीट आदि भी नहीं लगते हैं।

ऐसे में बहुत ही कम खर्च और देखभाल में इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। वर्षा ऋतु आरंभ होने के पहले ही इसके फल पक जाते हैं। यह ज्यादा ऊंचाई पर भी नहीं होते इसलिए इन्हें तोड़ना काफी आसान होता है। खास बात ये है कि यह किसी भी फसल से प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं, जबकि यह तो अन्य फसलों की पैदावार बढ़ाने में सहायता करते हैं।

जेट्रोफा के तेल (डीजल) का उपयोग

जेट्रोफा Jatropha Cultivation के बीजों से प्राप्त तेल से बायोडीजल बनाया जा सकता है। इसका इस्तेमाल कार आदि वाहन चलाने में किया जा सकता है। इसके तेल को सीधे लालटेन में डालकर जलाया जा सकता है। इसे जलाकर भोजन पकाने के काम में लिया जा सकता है। इसके अलावा इसके तेल का उपयोग वार्निश, साबुन, जैव कीटनाशक आदि बनाने में किया जा सकता है।


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