कपास (Cotton) की खेती: कपास एक महत्वपूर्ण फसल है, जानें कपास की खेती कैसे करें?

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है, भारत में कपास की खेती सबसे अधिक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में होती है।

भारत में कपास की खेती सदियों से चली आ रही है। कपास एक महत्वपूर्ण फसल है, कपास रेशे वाली नगदी फसल है। इसे सफेद सोना भी कहते हैं। जिसकी खेती भारत में की जाती है।  इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है, जो यह दर्शाता है कि भारतीयों का कपास से वस्त्र बनाने का ज्ञान प्राचीन काल से ही रहा है।

यहां कपास की खेती कैसे करें, इसकी जानकारी इस लेख के माध्यम से दी गई है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। फल के अंदर बीज और कपास की रेशा होती है। भारत में कपास की खेती सबसे अधिक महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में होती है।

कपास की खेती के लिए जरूरी जलवायु

कपास की उत्तम फसल के लिए आदर्श जलवायु का होना आवश्यक है। फसल के उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट और अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट होना उचित है। इसकी बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए। फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रातें ठंडी होनी चाहिए।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

कपास की खेती के लिए काली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है क्योंकि काली मिट्टी अधिक समय तक नमी रखती है और इसमें ह्यूमस की प्रचुर मात्रा होती है।

कपास की खेती का सही समय

कपास की खेती खरीफ के मौसम में होती है। यदि सही मात्रा में सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में भी लगाया जा सकता है। यदि किसी कारण से सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून के समय ही कपास की फसल लगाएं।

कपास की उन्नत किस्में

अच्छी फसल और पैदावार के लिए बीजों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अमेरिकन कपास की उन्नत किस्में लगा सकते हैं। अगर कुछ महत्वपूर्ण उन्नत किस्मों की बात करें तो पूसा 8-6, एलएस- 886, एफ- 286, एफ- 414, एफ- 846, गंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा, गुजरात कॉटन-14, गुजरात कॉटन- 16 और एलआरके- 516 मौजूद है. अगर संकर किस्मों की खेती करना चाहते हैं तो फतेह, एलडीएच- 11, एलएच- 144, धनलक्ष्मी, एचएचएच- 223, सीएसएए- 2, उमाशंकर, राज एचएच- 116 और जेकेएचवाई-1 लगा सकते हैं। अगर देसी किस्मों की बुवाई करनी है तो इसमें एचडी- 1, एचडी- 107, एच- 777, एच- 974, डीएस- 5 और एलडी- 230 महत्वपूर्ण है।

उन्नत किस्मों का चुनाव आप अपने क्षेत्र के लिए अनुसंशित बीजों का ही चुनाव करें। उन्नत किस्मों का चुनाव के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र अथवा कृषि विभाग से जरूर संपर्क करें।

सिचाई और उर्वरक प्रबंधन

कपास की फसल वर्षा आधारित होती है। लेकिन जहां अच्छी बारिश की संभावना कम है वहां सिंचाई का उचित प्रबंध करें। जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां फसल की अवधि के विभिन्न चरणों में नियमित सिंचाई की जाना चाहिए। फसल पकने के 10 दिन पहले फसल की सिंचाई करना बंद कर देना चाहिए।

कपास की खेती 

कपास की सघन खेती में कतार से कतार 45 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी पर लगाये जाते है, इस प्रकार एक हेक्टेयर में 1,48,000 पौधे लगते है। बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। इससे 25 से 50 प्रतिशत की उपज में वृद्धि होती है।

रोग एंव कीट प्रबंधन

बीटी कपास के आगमन के साथ, बॉलवॉर्म और अन्य चबाने वाली कीटों का प्रकोप बढ़ा है। हालांकि, कीट-अनुकूल परिस्थितियों में कीट से ग्रस्त होने की भारी घटनाओं के समय कपास के खेतों में उनकी घटनाएं देखी जा सकती हैं। ये अमेरिकी बॉलवॉर्म या फ्रुट बोरर, धब्बेदार बॉलवॉर्म, गुलाबी बॉलवॉर्म और तंबाकू कैटरपिलर हैं। इसके प्रबंधन के लिए जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें। वे रोग की प्रकृति को देखकर आपको सही दवाओं का अनुशंसा कर देंगे। कपास की फसल में ज्यादा रोग और कीट न लगे इसके लिए खेत को सदैव खरपतवार से मुक्त और साफ रखें।

कपास की खेती में लागत और कमाई

कपास की खेती प्रति एकड़ 30-50 हजार रुपए तक का खर्च आता है। यदि किसान भाई कपास की खेती उन्नत तरीके से करते हैं, तो उन्हें प्रति एकड़ कपास की फसल से एक लाख रुपए तक का मुनाफा हो सकता है।


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