जानें, सोयाबीन की उन्नत किस्में, मुख्य विशेषताएं और बुआई से पहले खेत तैयार कैसे करें?

भारत के कई राज्यों में सोयाबीन की व्यापक खेती की जाती है। मध्य प्रदेश प्रथम स्थान पर, उसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड और पूर्वोत्तरी राज्यों में सोयाबीन की खेती होती है।

सोयाबीन व्यापारिक फसल में सबसे अधिक मुनाफा देने वाली है, जो किसानों को सम्पदा से भर सकती है। इसका उपयोग पौष्टिक खाद्यान्न के रूप में किया जाता है। सोयाबीन से तेल, रिफाइंड उत्पाद, दूध आदि का व्यापार बाजार में बहुत मांग होती है। भारत के कई राज्यों में सोयाबीन की व्यापक खेती की जाती है। मध्य प्रदेश प्रथम स्थान पर, उसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड और पूर्वोत्तरी राज्यों में सोयाबीन की खेती होती है। सोयाबीन की बुआई का समय शुरू हो चुका है, जून से जुलाई के बीच ही सोयाबीन की बुआई का पीक सीजन होता है।

अगर कृषि कैलेंडर की सलाह दी जाए तो 15 जून से 5 जुलाई तक किसानों को सोयाबीन की बुआई करनी चाहिए। यदि यह समय पर बुआई की जाए, तो किसान सोयाबीन की बंपर उत्पादन कर सकता है। इसके अलावा, सोयाबीन की खेती से पहले किसानों को कुछ महत्वपूर्ण कार्यों का सम्पन्न करना होता है। इन कार्यों को समय पर पूरा करने से सोयाबीन की उत्पादकता में कई गुना वृद्धि हो सकती है। सोयाबीन की खेती के लिए उचित जमीन का चयन करें, सोयाबीन के लिए उपयुक्त मिट्टी होनी चाहिए, बुआई से पहले खेत को कई बार खेतों के द्वारा जोता जाना चाहिए, उच्च उत्पादनक्षम उन्नत बीजों का चयन करें, बीजों का उपचार करें, और खेत में खाद डालें। ये सभी छोटे-छोटे कार्य हैं जो किसान को समय पर पूरा करने पर ही सोयाबीन की उच्च उत्पादकता हासिल करने में मदद करेंगे।

सोयाबीन की बुआई से पहले खेत करें तैयार

सोयाबीन की बुआई से पहले, किसानों को खेत की तैयारी करनी चाहिए। जिस खेत में सोयाबीन की फसल बोनी जाएगी, उसे कल्टीवेटर द्वारा समतल कर लेना चाहिए। कल्टीवेटर का उपयोग करते समय, प्रति हेक्टेयर जमीन में 5 से 10 टन गोबर की खाद या 1.5 टन मुर्गी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा, जो किसान सोयाबीन की खेती को नियमित रूप से कर रहे हैं, उन्हें गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे मिट्टी की उपजाऊता बढ़ेगी। यह बीजों के जल्दी अंकुरण और उत्पादन को बढ़ाने में मदद करेगा। सोयाबीन के लिए रेतीली लोमड़ी मिट्टी उपयुक्त होती है। इसमें कार्बन की मात्रा अधिक होती है, जो सोयाबीन की पैदावार को बढ़ाने में सहायता करता है।

सोयाबीन की उन्नत किस्में विकसित

सोयाबीन की कई उन्नत किस्में आती हैं। कुछ अलग-अलग प्रदेशों की मिट्‌टी के हिसाब से वहां के किसानों को इस्तेमाल करनी चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर भारत में सोयाबीन की पूसा 12, एनआरसी 130 ये दो किस्में उत्तम रहती हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश और आसपास के क्षेत्रों में जेएस 2034, जेएस 116, जेएस 335, एनआरसी 128 जैसी किस्मों की जरूरत होती है। ध्यान रहे बीजों का अंकुरण 70 प्रतिशत से कम नहीं हो।

बीजों को दें स्वस्थ उपचार

भले ही आप अच्छी किस्म के बीज खरीद कर लाएं हो लेकिन बुआई से पहले इनको उपचारित कर लेना बेहतर रहता है। इन बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। इसके बाद रिज या बड़ी क्यारियों पर कतारबद्ध तरीके से 35-45 cm, पौधों से पौधों की दूरी 4-5 cm होनी जरूरी है। बीज को 3-4 cm तक की गहराई में ही बोना चाहिए। बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 65 से 75 kg होनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 56 kg यूरिया, 450- 625 kg सुपर फॉस्फेट, 34-84 kg म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल किया जाता है।

इस नई किस्म की सोयाबीन में कीटों का कोई असर नहीं

एक और खुशखबरी सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए है। हाल ही में, कृषि वैज्ञानिकों द्वारा एक नई सोयाबीन की विशेष किस्म विकसित की गई है, जिसका नाम M A C S 1407 है। इस किस्म पर कीटनाशक दवाओं का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह किस्म कीटों के लिए प्रतिक्रिया नहीं करती है। साथ ही, इसकी फसल उत्पादनता भी अधिक होती है।

इस किस्म की सोयाबीन की मुख्य विशेषताएं 

  1. कीट प्रतिरोध: यह सोयाबीन की किस्म गर्डल, बीटल, लीफ माइनर, रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिडस, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोधी होती है, जिससे इनका प्रभाव इस पर नहीं पड़ता।
  2. तत्विक समय: इस सोयाबीन की किस्म का विकास मात्र 104 दिनों में हो जाता है, जिससे उपजाऊ फसल को तत्परी से तैयार किया जा सकता है।
  3. उत्पादन: प्रति हेक्टेयर करीब 39 क्विंटल तक की उत्पादनशीलता के साथ, यह सोयाबीन की किस्म उच्च मात्रा में उत्पादन करती है।
  4. आसान कटाई: इस किस्म की सोयाबीन के तने मोटे होते हैं, फलियां बिखरती नहीं हैं और इसकी कटाई मशीन से आसानी से की जा सकती है। यह किसानों को उच्च उत्पादकता और सुविधाजनक कटाई प्रदान करती है।

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