पशुओं में लम्पी स्किन डिजीज रोग की पहचान एवं उसका नियंत्रण 2022

Lumpy Skin Disease दो वर्षों में, तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, केरल, असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में फैला

बरसात के मौसम में पशुओं में कई तरह के संक्रामक रोग फैलते हैं, जिनमें लम्पी स्किन डिजीज भी एक है। Lumpy Skin Disease (एलएसडी) या गांठदार त्वचा रोग एक वायरल रोग है जो गायों और भैंसों को संक्रमित करता है। यह रोग कभी-कभी जानवरों की मौत का कारण भी बन सकता है। पिछले दो वर्षों में, यह रोग तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, केरल, असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में देखा गया है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा पशुपालन और दुग्ध उत्पादक देश है। 20वीं पशु गणना के अनुसार देश में गायों की संख्या 18.25 करोड़ है, जबकि भैंसों की संख्या 10.98 करोड़ है। इस प्रकार, भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा भैंसे हैं।

देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी हुई है, अगर कोई बीमारी जानवरों को महामारी के रूप में संक्रमित करती है, तो इसका सीधा असर उनके उत्पादन पर पड़ता है, जिसका सीधा असर पशुपालकों की आय पर पड़ता है।

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तेजी से फैलता है Lumpy Skin Disease

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लम्पी स्किन डिजीज को सबसे तेजी से फैलने वाली बीमारियों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे कीड़ों द्वारा आसानी से फैलता है।

इसके साथ ही यह दूषित पानी, लार और चारा के जरिए भी जानवरों को संक्रमित करता है। गर्म और उमस भरा मौसम इस बीमारी को और तेजी से फैलाता है। ठंड का मौसम आने के साथ इस रोग की तीव्रता कम हो जाती है।

लम्पी स्किन डिजीज एलएसडी रोग का फैलाव

Lumpy Skin Disease (एलएसडी) क्रेप्रिपंक्स वायरस से फैलता है। यदि एक जानवर संक्रमित हो जाता है, तो अन्य जानवर भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। यह रोग मच्छरों-मक्खियों और चारे से फैलता है।

भीषण गर्मी और पतझड़ के महीनों के दौरान संक्रमण बढ़ जाता है क्योंकि मक्खियाँ भी अधिक संख्या में हो जाती हैं। वायरस दूध, नाक स्राव, लार, रक्त और अश्रु स्राव में भी स्रावित होता है, जो जानवरों के लिए चारा और पानी के जलाशयों में संक्रमण का एक अप्रत्यक्ष स्रोत बन जाता है।

गाय का दूध पीने से भी यह रोग बछड़ों को संक्रमित कर सकता है। वायरस भी संक्रमण के बाद 42 दिनों तक वीर्य में रहता है। इस बीमारी का वायरस इंसानों में नहीं फैलता है।

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गांठदार त्वचा रोग की पुष्टि कैसे की जा सकती है?

Lumpy Skin Disease से पीड़ित पशु को 2-3 दिन तक तेज बुखार रहता है। साथ ही पूरे शरीर पर 2 से 3 सेमी. कठोर गांठें निकलती हैं। कई अन्य लक्षण जैसे मुंह और श्वासनली में घाव, शारीरिक कमजोरी, लिम्फ नोड्स की सूजन (रक्षा प्रणाली का हिस्सा), पैरों में पानी आना, दूध की मात्रा में कमी, गर्भपात, पशुओं में बांझपन मुख्य रूप से देखा जाता है।

Lumpy Skin Disease के अधिकांश मामलों में पशु 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है, लेकिन दूध की कमी लंबे समय तक बनी रहती है। अत्यधिक संक्रमण होने पर पशुओं की मृत्यु भी संभव है, जो 1 से 5 प्रतिशत में देखने को मिलती है।

एलएसडी को कई तरह की बीमारियों के साथ भ्रमित किया जा सकता है, जिसमें छद्म गांठदार त्वचा रोग (गोजातीय हर्पीसवायरस 2), गोजातीय पैपुलर स्टामाडिकोसिस शामिल हैं। इसलिए, प्रयोगशाला में उपलब्ध परीक्षणों के माध्यम से वायरस डीएनए या उसके एंटीबॉडी का पता लगाकर बीमारी की पुष्टि की जानी चाहिए।

लम्पी स्किन डिजीज से बचाने के उपाय

  • रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए, यदि फ़ार्म पर या नजदीक में किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए।
  • रोगी पशुओं की जांच एवं इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए एवं फ़ालतू सामान को उचित प्रबंधन करके नष्ट कर देना चाहिए।
  • यदि अपने फ़ार्म पर या आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए।
  • रोग के लक्षण दिखाने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए, मेला, मंडी एवं प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए।
  • फ़ार्म में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए, मुख्यत: मच्छर, मक्खी, पिस्सू एवं चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए।
  • एक फ़ार्म के श्रमिक को दुसरे फ़ार्म में नहीं जाना चाहिए, इसके साथ–साथ श्रमिक को अपने शरीर की साफ़–सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। संक्रमित पशुओं की देखभाल करने वाले श्रमिक, स्वस्थ पशुओं से दूरी बनाकर रहें या फिर नहाने के बाद साफ़ कपड़े पहनकर स्वस्थ पशुओं की देखभाल करें।
  • यदि कोई पशु लम्बे समय तक त्वचा रोग से ग्रस्त होने के बाद मर जाता है, तो उसे दूर ले जाकर गड्डे में दबा देना चाहिए।
  • जो सांड इस रोग से ठीक हो गए हों, उनकी खून एवं वीर्य की जांच प्रयोगशाला में करवानी चाहिए। यदि नतीजे ठीक आते हैं, उसके बाद ही उनके वीर्य का उपयोग करना चाहिए
  • पूरे फ़ार्म की साफ़–सफाई का उचित प्रबंध होना चाहिए, फर्श एवं दीवारों को अच्छे से साफ़ करके एक दीवारों की साफ़–सफाई के लिए फिनोल (2 प्रतिशत) या आयोडीनयुक्त कीटनाशक घोल (1:33) का उपयोग करना चाहिए।
  • बर्तन एवं अन्य उपयोगी सामान को रसायन से कीटाणु रहित करना चाहिए। इसके लिए बर्तन साफ़ करने वाला डिटरजेंट पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइड, (2–3 प्रतिशत) या कुआटर्नरी अमोनियम साल्ट (0.5 प्रतिशत) का इस्तेमाल करना चाहिए।

Lumpy Skin Disease का अभी तक कोई टीका नहीं है, लेकिन फिर भी इस बीमारी का इलाज बकरियों में होने वाले चेचक के समान वैक्सीन से किया जा सकता है। गाय-भैंस को गोटेपॉक्स का भी टीका लगाया जा सकता है और इसके परिणाम भी बहुत अच्छे होते हैं।

इसके साथ ही अन्य पशुओं को इस बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित जानवर को पूरी तरह से अलग बांधकर बुखार और लक्षणों के अनुसार इलाज करना चाहिए।

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इलाज के लिए इन बातों का रखें ध्यान

Lumpy Skin Disease का वायरस से फैलती है, जिसके कारण इस बीमारी का कोई खास इलाज नहीं है। संक्रमण होने की स्थिति में अन्य बीमारियों से बचाव के लिए पशुओं का उपचार करना चाहिए।

  • रोगी पशुओं का इलाज के दौरान अलग ही रखना चाहिए,
  • दवाईयों का उपयोग डॉक्टर की सलाह अनुसार ही करना चाहिए।
  • यदि पशुओं को बुखार है, तो बुखार घटाने की दवाई दी जा सकती है।
  • यदि पशुओं के ऊपर जख्म हो, तो उसके अनुसार दवाई लगानी चाहिए।
  • रोगी पशुओं के बचाव के लिए जरूरत अनुसार एंटीबायोटिक दवाइओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • पशुओं की खुराक में नरम चारा एवं आसानी से पचने वाले दाने का उपयोग करना चाहिए।

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गांठदार त्वचा रोग का सबसे अच्छा इलाज क्या है?

Lumpy Skin Disease का कोई इलाज नहीं है। गैर-विशिष्ट उपचार (एंटीबायोटिक्स, विरोधी भड़काऊ दवाएं और विटामिन इंजेक्शन) आमतौर पर माध्यमिक जीवाणु संक्रमण, सूजन और बुखार के इलाज और जानवर की भूख में सुधार करने के लिए निर्देशित होते हैं।

गर्मी और नमी में बढ़ता है संक्रमण

इस रोग का प्रकोप गर्म और उमस भरे मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी और उमस बढ़ी है। बीमारी फैलने का खतरा भी बढ़ गया है। हालांकि ठंड के मौसम में इसका असर अपने आप कम हो जाता है।

गायों में ये हैं लक्षण

यह त्वचा पर एक गांठ की तरह बन जाता है। इसके साथ ही मवेशियों के नाक और आंखों से पानी निकलने लगता है। शरीर का तापमान बढ़ जाता है। मवेशी बुखार की चपेट में आ जाते हैं।

पशुओं में गांठ, बुखार

रोगग्रस्त मवेशियों के शरीर पर पड़ने वाली गांठें जब तक कसी रहती हैं, जकड़न और दर्द बना रहता है। पकने के बाद शरीर में घाव बन जाता है। जिसमें मक्खियाँ आदि बैठ जाते हैं, यहाँ तक कि कीड़े-मकोड़े भी गिर जाते हैं। घाव और बुखार के कारण जानवर कमजोर हो जाते हैं। इससे दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होता है।

समय पर इलाज

संक्रमित जानवर को एक जगह बांधकर रखें। उन्हें स्वस्थ जानवरों के संपर्क में न आने दें। स्वस्थ पशुओं में चेचक का टीका लगवाएं और बीमार पशुओं को बुखार और दर्द की दवा और लक्षणों के अनुसार इलाज करें।

जूनोटिक रोग (जानवर से मानव में संक्रमण) एलएसडी नहीं हैं

यह वायरस जनित रोग जूनोटिक रोग की श्रेणी में नहीं आता है, इसलिए पशुपालन को इससे अकारण डरना नहीं चाहिए। बीमार गाय के गर्म दूध के सेवन से अब तक मनुष्यों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव सामने नहीं आया है। सोशल मीडिया पर चल रही इस बीमारी की अफवाहों से पशु मालिकों को सतर्क रहना चाहिए।


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