पशुओं से फसल की रक्षा, पशु सुरक्षा के लिए रोका-छेका योजना

रोका-छेका योजना को शुरू करने का प्रमुख कारण देश में बढ़ती पशुओं की संख्या के कारण पशुपालक अपने पशुओं को खुले में छोड़ देते हैं। इतना ही नहीं कम दूध देने वाले पशुओं को पालने में खर्चा अधिक होने के कारण भी पशु मालिक अपने पशुओं को छोड़ देते हैं और इन सड़क पर खुले घूम रहे पशुओं के कारण किसानो के खेतो में फसलों को काफी नुकसान होता है। किसानों द्वारा लम्बे समय से इस समस्या के समाधान की मांग किसानों द्वारा की जा रही थी।

पशुओं से व्याप्त समस्या के समाधान के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रदेश में फसलों और पशुओं को सुरक्षित रखने के लिए 10 जुलाई 2022 से रोका-छेका योजना के तहत रोका-छेका संकल्प अभियान की शुरूआत पुन: की जा रही है। यह अभियान प्रतिवर्ष जुलाई में चलेगा। 

क्या है रोका-छेका योजना

छत्तीसगढ़ के मुखिया CM भूपेश बघेल ने रोका-छेका योजना को हरी झंडी दिखाई। रोका-छेका योजना के अंतर्गत गांवों में खरीफ फसलों की मवेशियों से सुरक्षा हो सकेगी और आवारा घूमने वाले मवेशियों पर रोक लगाई जाएगी। रोका-छेका छत्तीसगढ़ की पुरानी पारम्परिक संस्कृति का एक अंग है। रोका-छेका के माध्यम से कसम ली जाती हैं कि खरीफ फसलों की खेती के दौरान सभी पशुपालक लोग अपने मवेशियों को बाड़े और तबेला में ही रखेंगे। 

गौर करने वाली बात हैं की छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा निरंतर कृषकों को दलहन-तिलहन, मौसमी सब्जी, फल-फ्रूट की खेती सहित उन्नत कृषि उत्पादकता में वृद्धि के लिए उत्साहित कर रही है। यदि राज्य में वार्षिक खेती को बढ़ावा देना है, तो पशुओं से फसलों की सुरक्षित रखना बहुत ज़रूरी है। इस मकसद को पूरा करने के लिए रोका-छेका योजना चलाई जा रही है, जिसमें समस्त पशुपालकों सहित ग्रामवासियों का पूरा सहयोग प्राप्त होगा। इस योजना की जानकारी पशुपालकों एवं ग्रामवासियों तक पहुंचाने के लिए खास कार्यक्रम संचालित किए गए हैं।

क्या हैं रोका-छेका योजना के फायदे

  • इस योजना के अनुसार किसानों खेत में खड़ी फसल को मवेशियों से होने नुकसान कम होंगे।
  • आवारा और खुले में घूमने वाले पशुओं से होने वाली दुर्घटना भी कम हो जाएगी।
  • योजना के अंतर्गत मवेशियों को होने वाली बिमारियों का इलाज सही समय पर होगा।
  • आवारा और बेघर पशुओं को आश्रय मिलेगा और समय पर भोजन का प्रबंध होगा।

रोका-छेका योजना के उद्देश्य

रोका-छेका अभियान के जरिए किसान और पशुपालक अपने पशुओं को खुले में चराई के लिए नहीं छोड़ने का संकल्प दिलाया जायेगा, ताकि पशुओं से फसलों को नुकसान न पहुंचे। पशुओं को घरों, बाड़ों और तबेला में रखा जाएगा और उनके चारे-पानी का व्यवस्था भी किया जाएगा। गांवों में पशुओं के आश्रय के लिए तबेले-गौशाला आदि के बनाये जायें इस वजह से रोका-छेका अभियान का काम अब और भी ज्यादा आसान हो जायेगा। तबेले में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी की प्रबंध की चिन्ता अब किसानों और पशुपालकों को नहीं करनी होगी। गौशाला समितियाँ में इसका प्रबंध पहले ही किया जायेगा।

पशुओं को उपलब्ध कराई जाएँगी स्वास्थ्य सुविधाएँ

इसके साथ ही योजना में वर्षा ऋतु के दौरान पशुओं को होने वाली गलघोटू और एकटंगीया आदि बीमारियों से बचाने के इंतजाम भी इस दौरान किए जाने हैं। जिससे पशुओं को रोग से बचाकर पशुपालकों को होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

बताया गया है कि पिछले तीन साल से रोका-छेका अभियान का प्रत्यक्ष लाभ प्रदेश के किसानों को मिल रहा है। पशुओं को रखने के विशेष ध्यान से पशु खेतों में नहीं आते, जिससे फसलों का नुकसान नहीं होता। पशुओं के रखरखाव से जहां पशुओं की बीमारियां कम हो रही हैं वहीं दुग्ध उत्पादन बढ़ा है। पशुओं के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है। सड़कों पर पशुओं के नहीं आ पाने से दुर्घटनाओं में भी कमी आयी है।

पशुओं के स्वास्थ्य की होगी जाँच

शारीरिक संकेत पशुओं में होने वाली सामान्य शारीरिक प्रक्रियाओं को प्रतिबिंबित करते हैं। सामान्य परिणाम से पशु के स्वस्थ होने का संकेत मिलता है। शारीरिक क्रिया असामान्य होने पर पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। 

देश के पशुपालकों के लिए जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि उनके पशु स्वस्थ हैं या नहीं? कई बार पशुपालकों को पशुओं की बीमारी के बारे में बहुत देर से पता चलता है, जिससे पशुओं में बीमारी इतनी ज्यादा फैल जाती है कि पशुपालकों को नुकसान झेलना पड़ता हैं।  

देशभर में व्यवसाय के रूप में नई पहचान अब पशुपालकों को भी मिलने लगी है. ऐसे में पशुपालकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने पशुओं की सही से देखभाल करें. इससे जहां पशुओं का स्वास्थ ठीक रहेगा तो वही इसका फायदा सीधे किसानों को भी मिलेगा।

पशुओं को लगाया जाएगा टीका

बरसात के दिनों में ही पशुओं में गलघोटू और एकटंगिया की बीमारी होती है। पशुओं को इन दोनों बीमारियों से बचाने के लिए उनकी देखभाल इस मौसम में ज्यादा जरूरी है। रोका-छेका का अभियान भी इसमें मददगार होगा। गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए पशुधन विकास विभाग द्वारा पशुओं को टीका लगाया जा रहा है। किसान गौशाला में पशु चिकित्सा शिविर लगाकर पशुओं के स्वास्थ्य की जांच, पशु नस्ल सुधार हेतु बधियाकरण, कृत्रिम गर्भधान एवं टीकाकरण किया जाएगा।

रोका-छेका योजना में पशुओ के लिए आहार की व्यवस्था

पशुओं का रोका-छेका का काम अब गाँव में गौशाला के बनने से आसान हो गया है। गौशाला में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी के प्रबंध का काम गौशाला समितियाँ करने लगी हैं।

राज्य में पशुधन की बेहतर देखभाल के उद्देश्य से गाँव में गौशाला बनाए जा रहे हैं। अब तक 10,624 गौशाला के निर्माण की स्वीकृति दी गई है, जिसमें से 8,408 गौशाला बनकर तैयार हो गए हैं। गौशाला में आने वाले पशुओं को सूखा चारा के साथ-साथ हरा चारा उपलब्ध कराने के लिये सभी गौशाला में चारागाह का विकास किया जा रहा है। राज्य के 1200 से अधिक गौशाला में हरे चारे का उत्पादन भी पशुओं के लिये किया जा रहा है। गौशाला बनने से रोजगार में बढ़ोत्तरी हुई है।

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