Cucumber Farming जानिए सब कुछ ककड़ी की खेती के बारे में

ककड़ी की खेती से करें कमाई, Cucumber Farming यानि कम लागत बिना झंझट के मोटी आमदनी

कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने वाली फसल के रूप में किसान भाई ककड़ी की खेती भी कर सकते है। ककड़ी की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है। ककड़ी को कद्दू वर्गीय फसल के रूप में भी जाना जाता है। यह खीरे के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। ककड़ी की खेती को किसान नगदी फसल के रूप में करते हैं। भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है। अधिकांश जायद की फसल के साथ इसे उगाया जाता है। इसके फल जल्द ही एक फीट तक लम्बे हो जाते हैं। 

ककड़ी का सेवन मुख्य रूप से सलाद और सब्जी के रूप में किया जाता है। गर्मियों के मौसम में ककड़ी का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। गर्मियों का मौसम जब भी चरम पर पहुंचता है। मार्केट में ककड़ी की मांग भी बढ़ती जाती है। किसान भाई ककड़ी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते है।

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अगर किसान भाई वैज्ञानिक विधि से कड़ी की खेती करते है तो इससे होने वाला मुनाफा दुगना भी हो सकता है। अगर आप भी ककड़ी की खेती करने का सोंच रहे हैं, तो हमारी पोस्ट में ककड़ी की खेती कैसे करें तथा ककड़ी की खेती का समय, पैदावार के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी जा रही हैं। आप इसके माध्यम से अच्छी खेती कर एक अच्छी आमदनी कर पाएंगे।

जानिए ककड़ी के बारे में

ककड़ी का वैज्ञानिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय हैं। ककड़ी को संस्कृत में कर्कटी तथा मारवाडी भाषा में वालम काकरी भी कहते है। यह कुकुरबिटेसी वंश के अंतर्गत आती है। तोरई और ककड़ी की खेती एक जैसी हैं, केवल उसके बोने के समय में अंतर हैं। ऐसे स्थान जहा  शीत ऋतु अधिक नहीं होती, वहां अक्टूबर के बीच में ककड़ी के बीज बोए जा सकते हैं, या फिर इसे जनवरी में बोना चाहिए। जिन स्थानों में सर्दी अधिक पढ़ती है, वहा ककड़ी को फरवरी और मार्च के महीनों में लगाना चाहिए।

ककड़ी की खेती कैसे करें?

ककड़ी की खेती बलुई दुमट भूमि (चिकनी रेतीली मिट्टी) में अच्छी होती है। इसकी सिंचाई सप्ताह में दो बार करनी चाहिए। ककड़ी में सबसे अच्छी सुगंध गरम शुष्क जलवायु में आती है। ककड़ी की दो मुख्य जातियाँ होती हैं- एक में हलके हरे रंग के फल होते हैं तथा दूसरी में गहरे हरे रंग के। पहली किस्म को लोग बहुत पसंद करते है। ककड़ी की तुड़ाई कच्ची अवस्था में करनी चाहिए। अगर हम इसकी उपज की बात करें तो लगभग 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।

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ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

गौरतलब है की ककड़ी की खेती (Cucumber Farming) गर्म और शुष्क जलवायु सबसे  अच्छे से होती हैं। बारिश के मौसम में इसके पौधे ठीक से विकास करते हैं, किन्तु गर्मियों का मौसम पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता हैं। ककड़ी मुख्य रूप से गर्मी की फसल है। ठंडी जलवायु इसके लिए अच्छी नहीं होती हैं। इसके पौधे पूर्ण रूप से 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच ही विकसित हो सकते हैं। इसके साथ ही बीजों का जमाव लगभग 20 डिग्री सेल्सियस से कम के तापमान पर संभव नहीं हैं। वही दूसरी ओर अधिक तापमान इसके लिए अच्छा नहीं होता हैं।

ककड़ी की खेती के लिए भूमि

ककड़ी की खेती देश के सभी क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी खेती किसी भी उपजाऊ प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती हैं। अगर हमें इसकी अच्छी पैदावार चाहिए तो कार्बनिक पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मिट्टी को इसके लिए काफी बेहतर माना गया हैं। इसकी खेती में भूमि जल निकासी वाली होनी चाहिए, जल भराव वाली भूमि में ककड़ी की खेती करनें से बचे। ककड़ी की खेती में सामान्य पी.एच 6.5 से 7.5 मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती हैं।

ककड़ी की खेती के लिए खेत की तैयारी

खीरे की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसके खेत को अच्छी तरह से तैयार करना पड़ता है। खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद सभी घास को नष्ट कर दें और मिट्टी को उलटने वाले हल से खेत की जुताई करें। जुताई के बाद पानी बहकर खेत को चूर-चूर कर दें।

तीन-चार दिन की जुताई के बाद जब सतह की मिट्टी थोड़ी सूखने लगे तो खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को बारीक कर लें। खीरा के बीजों को समतल भूमि और मेड़ बनाकर बोया जाता है। इसकी बुवाई के काम से पहले तैयार खेत में नाला बना लेना चाहिए और जब मिट्टी में नमी हो तो बुवाई का काम शुरू कर देना चाहिए. खीरे के बीजों का अंकुरण और विकास नम मिट्टी में ही अच्छा हो सकता है।

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ककड़ी की उन्नत किस्में

खीरा कद्दू एक व्यापारिक नकदी फसल है। खीरा की खेती मुख्य रूप से बारी के रूप में की जाती है। इसकी खेती पारंपरिक फसल की खेती की तरह नहीं है, किसान भाइयों द्वारा गर्मी के मौसम में खेत से कुछ नकद कमाने के लिए इसकी खेती की जाती है। इस वजह से बहुत कम उन्नत किस्में विकसित की गई हैं। लेकिन इसकी कुछ संकर किस्में हैं, जिन्हें किसान भाई अधिक उपज के लिए उगाते हैं।

ककड़ी की संकर किस्में

प्रिया, हाइब्रिड-1, पंत शंकर खेड़ा-1 और हाइब्रिड-2 आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ अन्य किस्में जैसे – जैनपुरी खीरा, पंजाब स्पेशल, दुर्गापुरी खीरा, लखनऊ अर्ली और अर्का शीतल खीरा की कुछ किस्में हैं। जिसका उपयोग किसान भाई इसकी खेती के लिए कर सकते हैं।

ककड़ी की खेती के लिए बीज मात्रा और बुवाई की विधि

खीरे के बीजों को बीज और अंकुर दोनों द्वारा प्रत्यारोपित किया जाता है। बीज द्वारा रोपाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में लगभग 2 से 3 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। इसके बीजों को खेत में बोने से पहले, मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बीजों को बैनलेट या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें। खीरे के खेत की रोपाई के लिए पौधों को 20 से 25 दिन पहले नर्सरी में तैयार कर लेना चाहिए।

इसके अलावा आप चाहें तो इन पौधों को किसी भी पंजीकृत नर्सरी से भी खरीद सकते हैं। खीरे की फसल से बेहतर उत्पादन के लिए कतार से कतार तक 1.5 से 2.0 मीटर की दूरी पर 30 सेमी चौड़ी नालियां बनाई जाती हैं। नाले के दोनों किनारों पर 30 से 45 सेमी की दूरी पर बीज बोए जाते हैं; एक स्थान पर 2 बीज बोना; बीज लगाने के बाद एक स्वस्थ पौधे को छोड़कर दूसरे पौधे को हटा दें।

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ककड़ी की खेती में खाद और उर्वरक की मात्रा

ककड़ी के बीज की बुवाई से एक माह पूर्व खेत की तैयारी करते समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से कम्पोस्ट या सड़ी गाय का गोबर मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें ताकि खीरे की खेती से अच्छी उपज प्राप्त हो सके। इसके साथ ही 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 60 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर रासायनिक खाद के रूप में प्रयोग करें।

फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा को बुवाई नालों के स्थान पर मिलाकर मिट्टी में मिलाकर मेड़ बना लें। बची हुई नत्रजन को दो बराबर भागों में बाँट दें, बुवाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद नालियों में डालें और निराई-गुड़ाई के बाद मिट्टी में डालें और दूसरी मात्रा 35 से 40 दिनों के बाद पौधे की वृद्धि के समय, फूल आने से पहले स्प्रे के रूप में दें। यूरिया का तरल स्प्रे (5 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी) लाभकारी होता है।

ककड़ी की फसल की देखभाल कैसे करें

कृषि सिंचाई

आम तौर पर ककड़ी की फसल को अन्य फसलों की तुलना में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसकी खेती फरवरी से मार्च के महीनों में की जाती है। इन महीनों में फसल की नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। इसकी पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। खीरा की फसल को गर्मी में पांच से सात दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए और बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई जारी रखनी चाहिए। वहीं इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब फल की तुड़ाई करनी हो तो दो दिन पहले सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे फल चमकदार, चिकने और आकर्षक बने रहते हैं।

निराई

ककड़ी के खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। ककड़ी के पौधे लताओं के रूप में विकसित होते हैं। इसलिए खीरे की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। इसके पौधे केवल जमीन की सतह पर ही फैलते हैं, जिससे उनमें रोग होने का खतरा अधिक होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई विधि का प्रयोग किया जाता है। खीरे की फसल में पहली निराई रोपाई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए और बाद में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर निराई करनी चाहिए। इसकी फसल को 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है।

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कीट और रोकथाम

फल का कीड़ा:

फल मक्खी का प्रकोप मुख्य रूप से खीरे की फसल में देखा जाता है। इससे खीरे को ज्यादा नुकसान होता है। खीरे की फसल में इस मक्खी को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान 50 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी एक मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

बरुथी:

खीरे की फसल का यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहता है और कोमल तनों और पत्तियों का रस चूसता है। इस कीट से छुटकारा पाने के लिए एथियोन 50 ईसी को 0.6 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

लाल बीटल:

खीरे की फसल में यह कीट लाल रंग का होता है और अंकुरित और नई पत्तियों को खाता है और उन्हें छानता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए कार्बेरिल 5% चूर्ण का 20 किग्रा प्रति हे. की दर से छिड़काव करें

रोग और नियंत्रण

एन्थ्रेक्नोम:

खीरे के पौधों पर यह रोग पत्तियों पर दिखाई देता है। जिससे पत्तों पर भूरे रंग के छल्ले बन जाते हैं और पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम या मैनकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

डाउनी फफूंदी:

इस रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं और निचली सतह पर फफूंद की वृद्धि देखी जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए मैनकोजेब को दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर इसके घोल का पौधों पर छिड़काव करें।

ख़स्ता फफूंदी (छाया): यह रोग खीरे के पौधों की पत्तियों पर सफेद चूर्ण के धब्बे के रूप में दिखाई देता है। इस रोग का प्रकोप फलों और पत्तियों दोनों पर देखा जाता है। पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं तथा फलों की वृद्धि रुक ​​जाती है। इससे बचाव के लिए 20 ग्राम पानी में घुलनशील सल्फर को 10 लीटर पानी में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

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मुरझाना:

यह रोग पौधे के संवहनी ऊतकों को प्रभावित करता है, जिससे पौधा मुरझा जाता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए फुसैरियम सूखे के खिलाफ कैप्टन या हेक्सोकैप 0.2 से 0.3% का छिड़काव करें।

ककड़ी की कटाई और उपज

इसके फल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। मुख्य रूप से ककड़ी के फलों की कटाई नरम अवस्था (जब फल हरे और मुलायम हों) में की जानी चाहिए, अन्यथा फलों में आकर्षण कम होने से बाजार मूल्य कम हो जाता है। एक हेक्टेयर ककड़ी के खेत से किसान भाई को 200 से 250 क्विंटल उपज मिलती है। यह उपज इसकी खेती की विधि, किस्म, उर्वरक और जलवायु पर निर्भर करती है।


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