gehu ki nai kism अब रोटियां बनेगी नरम-कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूं की नई किस्म

gehu ki nai kism पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसे किस्म के गेहूं को विकसित किया है जिसकी रोटियां स्वादिष्ठ और नरम बनेगी

हमारे देश के कई राज्यों में गेहूं की रोटी खाना भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। भोजन के दौरान नरम रोटियां मिल जाए तो फिर क्या बात हैं। लेकिन लगभग गेहूं की सभी किस्मों के आटे से बनी रोटियां नरम नहीं बन पाती हैं। हमारे देश के वैज्ञानिकों ने इस समस्या का भी हल निकाल लिया हैं। कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसी किस्म विकसित की हैं, जिसके आटे से बनने वाली रोटियां नरम और स्वादिष्ठ होगी। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (Punjab Agricultural University) के वैज्ञानिकों ने गेहूं की नई किस्म (Gehu ki nai kism) पीबीडब्ल्यू-1 चपाती को विकसित किया हैं। इस किस्म को पंजाब में राज्य स्तर पर सिंचित दशाओं में बोया गया था।

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गेहूं की नई किस्म पीबीडब्ल्यू-1 चपाती

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के पादप प्रजनन और आनुवंशिकी के हेड नई प्रजाति/किस्म के गेहूं को विकसित करने वाले डॉ. गुरविंदर सिंह मावी ने इस किस्म के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हमारे द्वारा गेहूं की बहुत सारी नई किस्मों को विकसित किया गया हैं। गेहूं का उपयोग अलग-अलग तरह से किया जाता हैं। उसी अनुसार हर किस्म की अपनी एक विशेषता होती हैं। यह भी सही हैं कि सभी किस्मों के गेहूं से बनने वाली रोटियां अच्छी नहीं बनती हैं। यहीं कारण है कि कुछ खास किस्म रोटियों को नरम बनाने के लिए तैयार की गई हैं।

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किसानों को हो रहा था नुकसान

gehu ki nai kism अब रोटियां बनेगी नरम-कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की गेहूं की नई किस्म

गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं की सी 306 चपाती किस्म को रोटी बनाने के लिए बेहतर माना जाता रहा हैं। इसके बाद पीबीडब्ल्यू 175 गेहूं की किस्म को विकसित किया गया। जिससे अच्छी गुणवता वाली चपाती/रोटी बनती थी। कुछ समय बात यह किस्म धारीदार और भूरे रंग के रतुआ के लिए अतिसंवेदनशील हो गई थी। जिसके चलते किसानों को नुकसान उठाना पड़ा रहा था। यहीं कारण है कि कृषि वैज्ञानिक ने लंबे समय से उच्च उपज क्षमता के साथ ही रोग प्रतिरोधक किस्मों को विकसित करने का प्रयास शुरू कर दिया था।

आटे की गुणवत्ता बढ़ी

डॉ. मावी ने जानकारी देते हुए बताया कि हम लोग लंबे समय से कोई गेहूं की ऐसी किस्म/प्रजाति को विकसित करने का प्रयास कर रहे थे, जो रोग प्रतिरोधी होने के साथ-साथ उसके आटे की रोटियां भी बेहतर और नरम बने। इस प्रकार गेहूं की नई किस्म (new variety of wheat) का विकास हुआ। हमने इस नई किस्म को विकसित करने के लिए पुरानी किस्मों के जीन का उपयोग किया हैं। यह किस्म पीला और भूरा रतुआ की प्रतिरोधी किस्म होती हैं। रोगों का असर कम होने के कारण इस गेहूं की किस्म के आटे की गुणवता बढ़ जाती हैं।

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आटा नहीं पड़ेगा काला

इसलिए इस गेहूं का आटा सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं। अन्य किस्मों की तुलना में इसका उत्पादन कम होता हैं। क्योंकि इसकी क्वालिटी अच्छी हैं और अच्छी रोटी बनाने के लिए इसका विकास किया गया हैं। इस किस्म की एक और विशेष बात यह है कि अन्य किस्म के गेहूं के आटे को पानी में डालकर गूंथकर रखते है तो वह काला पड़ जाता हैं। लेकिन इस नई किस्म के गेहूं के आटे को गूँथ कर 24 घंटे रख सकते हो। उसके बाद भी यह काला नहीं पड़ेगा। नई किस्म के गेहूं की फसल 154 दिनों में तैयार हो जाती हैं।

हर राज्य में हो सकती है इसकी खेती

पीबीडब्ल्यू-1 चपाती किस्म के गेहूं की खेती देश के अन्य राज्यों में की जा सकती हैं के सवाल पर डॉ. गुरविंदरसिंह ने बताया कि पिछले साल इसे हमने पंजाब के किसानों को बोने के लिए दिया था। इसे खासतौर पर पंजाब के लिए विकसित किया गया हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका उत्पान देश के दूसरे प्रदेशों के किसान इसकी खेती नहीं कर सकते हैं। अगर कोई भी किसान पीबीडब्ल्यू-1 चपाती किस्म की खेती करना चाहता है तो वह हमारे विश्वविद्यालय में संपर्क कर सकता हैं। हम उसकी सहायता करेंगे।

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अधिक सेंकने के बाद भी रहेगी नरम

पीबीडब्ल्यू-1 चपाती (PBW-1 Chapati) किस्म के विकसित होने के पहले तक पंजाब में किसान 1965 से सी-306 किस्म के गेहूं से बनी रोटियां खाते रहे। वहां के किसान भी गुणवत्ता को लेकर उसी पर निर्भर रहते थें। लेकिन पत्त्ती में रतुआ लगने के कारण इस नई किस्म के गेहूं का विकास संभव हो सका। इसके पहले तक पंजाब के कई उपभोक्ता मध्यप्रदेश के गेहूं के आटे से बनी रोटियां पंसद करने लग गए थे। लेकिन अब पीबीडब्ल्यू-1 चपाती की गुणवत्ता और बेहतर स्वाद के साथ ही नरम रोटी के कारण इसका उपयोग शुरू होगा। इसके गेहूं के आटे से बनी रोटियां एक समान सफेद होती है। अधिक सेंकने पर भी रोटियां नरम रहती हैं।


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