Soyabean ki kheti | सोयाबीन की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा

Soyabean ki kheti का उन्नत तरीका | जानिए सोयाबीन बोने का सही समय क्या है | सोयाबीन की खेती कैसे की जाए? | उसके रोग, कीट और उसके निदान

किसान भाईयों ने वैसे तो अभी से ही की तैयारी शुरू कर दी है। गेहूं की फसल (wheat crop) काटने के बाद अधिकांश किसान भाईयों ने खेतों में पलटा शुरू कर दिया है। इसी के साथ किसान सोयाबीन की फसल की तैयारी में जुट गए है। हालांकि अभी भी तकरीबन डेढ़ महीने का समय शेष है। लेकिन KrishiBiz.com किसान भाईयों के लिए सोयाबीन की खेती की सभी जानकारी लेकर आया हैं। हम अपने लेख में आपको बताने जा रहे है कि सोयाबीन की खेती कब बोई जाती है, सोयाबीन की खेती MP के साथ ही सोयाबीन की खेती उत्तर प्रदेश में कब और कैसे होती है आदि विषयों की जानकारी देने जा रहे है।

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सोयाबीन (Soyabean) के बीजों से अधिक मात्रा में सोयाबीन का तेल निकाला जाता है, इसलिए सोयाबीन को तिलहन की फसल के रूप में भी जाना जाता हैं। सोयाबीन में मानव शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें 44 प्रतिशत तक प्रोटीन, 22 प्रतिशत वसा, 21 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 12 प्रतिशत नमी की मात्रा पाई जाती हैं।

लगभग हर राज्य में सोयाबीन का उपयोग अलग-अलग प्रकार से किया जाता है। सोयाबीन के सेवन से रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता हैं। इसमें कई प्रकार के अम्ल भी पाए जाते हैं। सोयाबीन की खेती में गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती हैं। कई लोग जानना चाहते है कि सोयाबीन की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है, तो किसान भाईयों हम आपको बताने चाहते है कि देश में मध्यप्रदेश, छत्तीगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में सोयाबीन की फसल बोई जाती हैं।

मध्यप्रदेश से 45 प्रतिशत सोयाबीन का उत्पादन (soybean production) होता है। जबकि विश्व में सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन करने वाला देश ब्राजील हैं। हम इस लेख के माध्यम से 9560 सोयाबीन की खेती की जानकारी और सोयाबीन में खेती में खाद का कितना और कौन सी खाद का उपयोग किया जाता है इसकी भी जानकारी देंगे।

सोयाबीन की खेती के लिए कैसी मिट्टी, जलवायु और तापमान होना चाहिए

कृषि विशेषज्ञों और अनुभवी किसान भाईयों का कहना है कि सोयाबीन की बंपर पैदावार के लिए खेत में चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती हैं। इसी के साथ खेत में अच्छी जल निकासी भी होनी चाहिए। बरसात के समय खेत में पानी भरा नहीं पाए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। खेत की जमीन का पीएच मान 7 के बीच होना जरूरी हैं। उष्ण जलवायु को सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त माना गया हैं। गर्म और नम जलवायु में सोयाबीन के पौधे अधिक फली देते हैं। इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती हैं। जबकि उंचे तापमान में इसके बीच अच्छे से पक जाते हैं।

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सोयाबीन की उन्नत किस्म और पैदावार

सोयाबीन की खेती को सही समय और बेहतर प्रबंधन के साथ किया जाए तो यह किसान भाईयों के लिए बंपर कमाई का जरीया बन सकती हैं। वर्तमान में सोयाबीन की कई उन्नत किस्म आ गई हैं। ये उन्नत किस्म अलग-अलग स्थान पर अधिक पैदावार देने के लिए तैयार की गई हैं।

उन्नत किस्म               उत्पादन का समय            उत्पादन की मात्रा

जेएस 93-05              95 दिन                    20 से 25 क्विंटल/ हेक्टेयर
एनआरसी-12              90 दिन                    25 से 30 क्विंटल/ हेक्टेयर
प्रतिष्ठा                     100 दिन                   20 से 30 क्विंटल/ हेक्टेयर
एनआरसी-86              95 दिन                    25 क्विंटल/ हेक्टेयर
जेएस 20-34              85 से 90 दिन             22 से 25 क्विंटल/ हेक्टेयर
एनआरसी -7               100 दिन                   35 क्विंटल/ हेक्टेयर

सोयाबीन की खेती (Soyabean ki kheti) की तैयारी और उर्वरक का उपयोग

सोयाबीन की खेती के लिए खेत तैयार करने के लिए उसकी मिट्टी का पलटना तथा गहरी जुताई की जानी चाहिए। गहरी जुताई के कारण खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष और कीट पूरी तहस से नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद गर्मी के सीजन में कुछ दिनों के लिए खेतों को ऐसे ही धूप खाने के लिए छोड़ दिया जाता हैं। जिससे खेत में मौजूद कीट और वैक्टेरियां खत्म हो जाए।

पहली जुताई के बाद खेत में 20 से 25 ट्राली गोबर की पुरानी खाद भी प्रति हेक्टेयर के मान से डाल सकते हैं। खाद डालने के बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई करें। जिससे खेत की मिट्टी में गोबर खाद अच्छे से मिल जाए। इसके बाद पानी लगाकर पलवे कर सकते हैं।

मिट्टी सूख जाने के बाद एक बार फिर से खेत की जुताई करें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती हैं। यहां तक पहुंचने के बाद खेत को पाटा लगाकर समतल कर सकतें हैं। किसान भाईयों इसका यहा फायदा यह होगा की खेत में जल भराव नहीं हो पाएगा। एक बार ओर अगर आप सोयाबीन की खेती में रासायनिक खाद का उपयोग करते हैं तो आपको प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 40 केजी पोटाश, 60 केजी फासफोरस. 20 केजी गंधक और 20 केजी ही नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव खेत की आखरी जुताई के समय करन फायदेमंद होगा।

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सोयाबीन की खेती में बीजों की रोपाई कैसे करें

सोयाबीन की खेत के लिए बीजों की रोपाई के लिए एक हेक्टेयर के खेत में छोटे आकार के 70 केजी बीज, मध्यम आकार के 80 केजी और बड़े आकार के 100 केजी बीज की आवश्यकता होती हैं। सोयाबीन की रोपाई समतल खेत में मशीन के माध्यम से की जाती हैं। खेत में 30 सीएम की दूरी पर रखते हुए लाइन को तैयार किया जाता हैं।

बीजों की रोपाई 2 से 3 सीएम की गहराई में की जानी चाहिए। खेत में रोपाई से पहले बीजों को केप्टान, थीरम, कार्बेन्डाजिम या थायोफेनेट मिथीईल का तय मिश्रण बनाकर उपचार कर लेना चाहिए। इससे बीच अंकुरण के समय रोग से सुरक्षित रहते हैं। सोयाबीन की खेती के लिए बीजों की रोपाई जून और जुलाई में की जानी चाहिए।

Soyabean ki kheti में सिंचाई कैसे करें

वैसे तो सभी किसान भाईयों को पूरी जानकारी है कि सोयाबीन के बीजों की रोपाई बारिश के सीजन में की जाती हैं। इसलिए सोयाबीन की खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम होती हैं। लेकिन बारिश समय पर न हो और अगर आपको लगे की खेत में सिंचाई करना चाहिए तो खेत में पानी छोड़ सकते हैं। बारिश का सीजन समाप्त होने के बाद सप्ताह में कम मात्रा में सोयाबीन के पौधों को पानी दें। कुछ दिनों बाद पौधों मे फलिया आना शुरू हो जाएगी। तब तक पौधों में नमी बनाए रखें। इसके लिए हल्की-हल्की सिंचाई की जरूरत रहेंगी। इससे फली और उसमें दाने की पैदावार अधिक मात्रा में होती हैं।

सोयाबीन की खेती में खरपतवार का नियंत्रण कैसे करें

सोयाबीन की खेती में पौधों की वृद्धि बहुत जरूरी है। इस वृद्धि को खरपतवार नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए इसके नियंत्रण के लिए रासायनिक और यांत्रिक दोनों विधि का उपयोग किया जा सकता हैं। यांत्रिक तरीके से खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए निदाई-गुड़ाई की जा सकती हैं। रोपाई के 20 से 25 दिन बाद यह कार्य करना जरूरी होता हैं। फसल उगने के बाद डोरे/कलपे चाला सकते हैं।

जबकि रासायनिक विधि के माध्यम से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए किसाना भाईयों को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मेटोलाक्लोर, इमेजेथापायर और क्यूजेलेफोफ इथाइल की उचित मात्रा का छिड़काव फसल पर करना चाहिए। इसके अलावा फ्लुक्लोरोलिन या ड्राइफ्लोरोलिन की उचित मात्रा का छिड़काव सोयाबीन की खेती में बीज रोपाई के पहले करे तो बहुत अच्छा परिणाम सामने आएगा।

सोयाबीन के पौधे पर लगने वाले रोग, कीट और उनकी रोकथाम

सोयाबीन का पौधा जैसे-जैसे बढ़ा होते जाता है, वैसे-वैसे रोग और कीट से वह खराब होने लगता हैं। समय रहते अगर इन रोगों का निदान कर लिया जाए तो सोयाबीन की फसल का उत्पादन अच्छा होता हैं। यहीं कारण है कि किसान भाईयों को सोयाबीन के रोग और उसके निदान तथा रोकथाम के लिए समय रहते प्रयास करना चाहिए। KrishiBiz.com किसान भाईयों को सोयाबीन के पौधों पर लगने वाले रोग, कीट और उनके रोकथाम की पूरी जानकारी दे रहा हैं।

-पित्ती धब्बा रोग

यह सोयाबीन के पौधों की नई और पुरानी दोनों पत्तियों में दिखाई देता हैं। इस रोग के प्रभाव के कारण पौधों की पत्तियों पर छोटे आकर के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां पीले रंग की हो जाती हैं और सूखकर गिर जाती हैं। इस रोग से बचाव के लिए सोयाबीन के पौधे पर कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता हैं।

-फली झुलसन

फली झुलसन रोग का प्रभाव सोयाबीन के पौधों पर फूल से फली बनने के समय देखने को मिलता हैं। इस रोग के कारा सोयाबीन की पैदावार को बहुत नुकसान पहुंचता हैं। इस रोग के कारण सोयाबीन के पौधे के तनों, फूल तथा फलियों पर भूरे और लाल रंग के अलग-अलग आकार के धब्बे बनने लग जाते हैं। इस रोग के प्रभाव में आकर सोयाबीन की पत्तियों का सिरा पीला व भूरा रंग का हो जता है। इसके बाद पत्तियां मुडकर गिर जाती हैं।

इस रोग से बचाव के सबसे अच्छा तरीका यह है कि बीज रोपाई से पहले बीजों को केप्टान, थायरम और कार्बोक्सिन की उचित मात्रा के मिश्रण से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद भी फसल पर यह रोग दिखाई दे तो किसान भाईयों को डरने की आवश्यकता नहीं हैं। इसके लिए जाइनेब या मेन्कोजेब का छिड़काव कर सोयाबीन का पौधा सुरक्षित किया जा सकता हैं।

-तम्बाकू इल्ली और कामलिया कीट

सोयाबीन के पौधों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले रोग में तम्बाकू इल्ली और कामलिया कीट मुख्य हैं। कामलिया की सुंडी पौधों (plants) के नाजुक हिस्सों और तनों, शाखाओं तथा पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हे नष्ट कर देते हैं। यह रोग सोयाबीन की फली को बहुत अधिक प्रभावित करता हैं। इस रोग से बचाने के लिए इंडोक्साकार्ब, रेनेक्सीपायर या प्रोपेनफास की उचित मात्रा का मिश्रण बनाकर छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।

-चारकोल रोट

चारकोल रोट रोग सोयाबीन के पौधों की जड़ों पर आक्रमण करता हैं। चारकोल रोट के प्रभाव से पौधे की जड़े सड़कर गिरने लगती हैं। जिसके कारण पौधा पूरी तरह से सूखकर नष्ट हो जाता हैं। इस खतरनाक रोग से बचने के लिए पौधों पर काबॉक्सिन और थायरम को 2:1 के अनुपात में मिलाकर सोयाबीन के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा अतिरिक्त ट्रायकाडर्मा विर्डी का उपयोग किया जा सकता हैं।

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सोयाबीन की फसल की कटाई, पैदावार और फायदें

सोयाबीन की खेती की फसल बीज रोपाई के 90 से 100 दिन बाद उत्पादन के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं। फसल पकने के बाद पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली पड़कर गिरने लगती हैं। वहीं फलियों का रंग भूरा हो जाता हैं। यह सकेंत है कि फसल पूरी तरह से पक गई है। फसल को काटकर खेत में ही ढेर करके सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है।

फलियां सूखने के बाद थ्रेसर के माध्यम से सोयाबीन के दाने को अलग कर लिया जाता हैं। एक हेक्टेयर खेत में 20 से 25 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन होता हैं। इसका बाजारी भाव 3500 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल होता हैं। जिसके हिसाब से किसान भाईयों को एक बार की फसल में तगड़ा मुनाफा हो सकता हैं।

Soyabean ki kheti से जुड़े प्रश्न/ FAQ

प्रश्न- सोयाबीन की खेती के लिए बीजों की बुवाई कब करना चाहिए।
उत्तर- सोयाबीन की खेती के लिए बीजों की बुवाई जुन और जुलाई माह में की जानी चाहिए।

प्रश्न- सोयाबीन की खेती में बीज रोपाई के बाद उत्पादन कितने दिनों में होता हैं।
उत्तर- सोयाबनी की खेती में रोपाई के 90 से 100 दिनों के बाद उत्पादन होता हैं।

प्रश्न- सोयाबीन की खेती कहां होती है।
उत्तर-सोयाबीन की खेती मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, और राजस्थान में होती हैं।

प्रश्न- सोयाबीन की खेती में कौन सी खाद डालें।
उत्तर सोयाबनी में प्रति एकड़ में 40 किलो डीएपी, 15 किलो पोटाश, 5 किलो बेन्टोसल्फ, 5 किलो सन्निधि, 5 किलो श्रीजिंक आधार खाद डालना चाहिए।

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