कम मेहनत और कम पानी वाली खेती ,कोई रोग नहीं, लाखों का मुनाफा।
खेती से मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आपको भी ऐसी खेती करनी होगी, जिसमें लागत कम आए, ताकि मुनाफा हो सके।
आपने अक्सर ही किसानों को ये कहते सुना होगा कि खेती में पैसा नहीं है। उनका कहना सही भी है, क्योंकि परंपरागत खेती से वाकई मुनाफा कमाना बहुत मुश्किल होता है। मुनाफा होता भी है तो बहुत कम। अगर आप भी एक किसान हैं और खेती से मुनाफा कमाना (Business Idea) चाहते हैं तो आपको भी ऐसी खेती करनी होगी, जिसमें लागत कम आए, ताकि मुनाफा हो सके। ऐसे में आप करे- हल्दी की खेती,अलसी की खेती,जिमीकंद (सूरन) की खेती।
हल्दी की खेती
हल्दी की बुआई मई-जून के दौरान की जाती है. जिस भी खेत में हल्दी की खेती करनी है उसे पहले 2-3 बार अच्छे से जोत देना चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. मिट्टी जितनी भुरभुरी होगी, उसमें हल्दी उतनी ही अच्छे से बैठेगी. खेत में पानी निकासी की अच्छी सुविधा होनी चाहिए, ताकि पानी ना रुके वरना हल्दी की फसल खराब हो सकती है. हल्दी की खेती उसके छोटे-छोटे अंकुरित बीजों से की जाती है।
इसकी फसल 6-8 महीनों में तैयार हो जाती है। अगर आप हल्दी खुले खेत में लगाते हैं तो जमीन को नम बनाए रखने के लिए सिंचाई की जरूरत होगी, लेकिन अगर किसी पेड़ वाली फसल के बीच-बीच में हल्दी लगाते हैं तो छाया होने की वजह से अच्छी नमी रहेगी। ऐसे में आपको कमपानी और कम सिंचाई करने की जरूरत पड़ेगी।
हल्दी की खेती लाइनों में की जाती है और इसके लिए ऐसी मिट्टी अच्छी मानी जाती है जिसमे जल निकासी की क्षमता अच्छी हो। अतः हल्दी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी या मटियार दोमट मिट्टी ठीक होगी। थोड़ी बड़ी होने पर उस पर दोनों तरफ से थोड़ी-थोड़ी मिट्टी चढ़ा दी जाती है।
इससे फायदा ये होता है कि हल्दी को फैलने और अच्छे से बैठने के लिए ढेर सारी मिट्टी और जगह मिल जाती है. इसकी फसल करीब 8 महीने में तैयार हो जाती है. हल्दी की फसल की अच्छी बात ये है कि यह छायादार जगह में भी अच्छी पैदावार देती है. ऐसे में अगर आप बागवानी करते हैं तो पेड़ों के बीच की जगह में हल्दी लगा सकते हैं और अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
एक एकड़ में 8 क्विंटल बीज लगता है। जिसमें उत्पादन 150 से 200 क्विंटल तक होता है, इसका बीज भी तैयार किया जा सकता है, पक कर हल्दी का दाम दो गुना हो जाता है।
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अलसी की खेती
तिलहन फसलों में अलसी (linseed) एक महत्वपूर्ण फसल है। इसकी गिनती रेशेदार फसलों में की जाती है। इसे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कहीं-कहीं इसे तीसी भी कहते हैं।
हमारे देश में तिलहन में अलसी एक ऐसी फसल है जिसे किसान कम पानी में ले सकते हैं। इस फसल में न तो कोई कीटनाशक लगता है और न ही प्रतिकूल वातावरण का कोई असर पड़ता है।
अलसी के लिये काली भारी एवं दोमट (मटियार) मिट्टियाँ उपयुक्त होती हैं। अधिक उपजाऊ मृदाओं की अपेक्षा मध्यम उपजाऊ मृदायें अच्छी समझी जाती हैं। भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए । आधुनिक संकल्पना के अनुसार उचित जल एवं उर्वरक व्यवस्था करने पर किसी भी प्रकार की मिट्टी में अलसी की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
अलसी के लिए 40 से 60 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम स्फुर, 20 किलोग्राम पोटाश, 30 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर देने की सिफारिश की गई है। प्रारंभिक तौर पर 100 से 150 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में मिलाएं। समय पर खरपतवार नियंत्रण तथा केवल 2-3 सिंचाई ही काफी हैं।
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जिमीकंद (सूरन) की खेती
भारत में आज भी किसान परंपरागत फसलों की खेती करते आ रहे हैं, इससे उनके आय में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। जबकि ऐसे कई फसलें है जिनकी खेती करके किसान अपनी आय को दुगुनी कर सकते हैं। इन्हीं फसलों में एक है- जिमीकंद(सूरन) की खेती।
जिमीकंद (सूरन) को भारत में कई नामों से जाता है। इससे कुछ इलाकों में सूरन और ओलभी कहते हैं। अभी तक जिमीकंद(सूरन) की खेती केवल व्यक्तिगत तौर पर की जाती रही है। लेकिन आज देश के कई किसान ऐसे है जो इसकी खेती करके लाखों रुपए कमा रहे हैं। जिमीकंद एक सब्जी ही नहीं वरन यह एक बहुमूल्य जड़ीबूटी है जो सभी को स्वस्थ एवं निरोग रखने में मदद करता है।
अधिक उत्पादन के लिए इसकी खेती भूरभुरी दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। इसकी खेती जलजमाव वाले खेत में नहीं करना चाहिए। इसकी खेती के लिए 5.5 से 7.2 तक की पीएचमान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होता है।एक से डेढ़ फीट की गड्ढा तैयार कर उसमें फसलों के अवशिष्ट पदार्थ डाल के उसके उपरांत जिमीकंद के बीज का रोपण कर मिट्टी और खाद से फसल की बुवाई कर देनी चाहिए ।इस विधि से जिमीकंद की खेती करने से अत्याधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त होता है।
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